भ्रष्टाचार, मंहगाई और व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह का आगाज


गोपाल प्रसाद 

हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार और मंहगाई है परन्तु इसके समाधान हेतु व्यवस्था परिवर्तन के जंग का आगाज़ करना होगा . दुःख की बात यह है कि इस क्रांति के लिए जनचेतना का अभाव है. सोनिया गाँधी ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए बड़े- बड़े वायदे किए, परन्तु वे वायदे इतने खोखले हैं कि न केवल केन्द्रीय नेता भ्रष्ट हैं बल्कि कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी जमकर पैसा बनाने में लगे हैं. पिछले कुछ दिनों में केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा किए गए करोड़ों रूपए घोटाले का भंडाफोड़ हुआ है. देश कि जनता मंहगाई और गरीबी से कराह रही है , लेकिन नेता करोड़ों हड़पकर मजे लूट रहे हैं .पूर्वोत्तर में 58 हजार करोड़ का घोटाला ,76 हजार करोड़ का टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला, 70 हजार करोड़ का कॉमनवेल्थ गेम घोटाला ,आदर्श सोसाईटी घोटाला , जल विद्युत घोटाला , अनाज घोटाला ,भ्रष्ट सीवीसी अधिकारी नियुक्ति और विदेशों में जमा अरबों रूपए का कालाधन आदि के खिलाफ आम आदमी काफी चिंतित है, जो अब आन्दोलन करना चाहता है. राजधानी सहित देश के करीब 62 शहरों में छात्रों -युवाओं -महिलाओं ने लाखों कि संख्या में प्रदर्शन कर केंद्र सरकार से भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने के लिए जनलोकपाल बिल लागू करने तथा सभी राज्यों में जन लोकायुक्त बिल लागू करने की मांग की है. धीरे -धीरे यह आन्दोलन एक वृहद आकार लेने जा रहा है.

भ्रष्टाचार एक अभिशाप है. भ्रष्टाचार के कारण सरकार द्वारा आम आदमी के लिए बनाई गयी किसी भी योजना का प्रतिपादन नहीं हो सकता. यह दीमक कि तरह पूरे तंत्र को खोखला करता चला जा रहा है. यूपीए सरकार के घोटाले कि लम्बी सूची और बढ़ती मंहगाई से राजधानी ही नहीं सम्पूर्ण देश की जनता त्राहि- त्राहि कर रही है. राष्ट्रमंडल खेलों में हुए घोटालों में पर्यटन एवं शहरी विकास मंत्रालय और दिल्ली सरकार को बचाने का प्रयास करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से सीधे हस्तक्षेप किया जा रहा है. केंद्रीय सतर्कता आयोग इन घोटालों कि जांच सीबीआई से करने की बात कर रहा है. अब मुख्य सतर्कता आयुक्त पी जे थॉमस भी इन भ्रष्टाचारियों की सूची में शामिल हो गए हैं. सुप्रीम कोर्ट के शिकंजा कसने के बाद प्रशासन के घोटालों की पोल खुल गयी है. सीबीआई की ओर से पूर्व संचार मंत्री ए .राजा की गिरफ्तारी और उसके भ्रष्ट साथियों की चार्जशीट अदालत में पेश होने तथा कलमाड़ी के हश्र से केंद्र सरकार की भ्रष्ट नीतियों का खुलासा हो गया है .लोगों के मनः मस्तिष्क में गूँज रहा है -

" डगर- डगर और नगर- नगर जन -जन की यही पुकार है!
बचो- बचो रे मेरे भैया इस सरकार में केवल भ्रष्टाचार है! "

मंहगाई चरम सीमा पर है. लोगों का घरेलू बजट बिगड़ गया है . तेल कंपनिया सरकार की मिलीभगत से हर दूसरे दिन पेट्रोल- डीजल- गैस के दामों में बढोतरी कर रही है , जिससे जनता आक्रोशित है. तेल माफिया का गुंडाराज इतना बढ़ गया है की वे कलेक्टर तक की हत्या करने से नहीं चूक रहे हैं. ऐसी स्थिति में आम आदमी के जान -माल की सुरक्षा भगवान भरोसे ही है. आरटीआई के माध्यम से आरटीआई कार्यकर्तागण भष्टाचार के विभिन्न मामलों को परत दर परत करके उजागर कर रहे हैं . भष्टाचारी लोग अब आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले ही नहीं बल्कि उनकी हत्या भी करवा रहे हैं. सरकार आरटीआई दाखिल करने वालों को सुरक्षा देने की बात कह रही है ,लेकिन उनकी हत्याओं का सिलसिला जारी है. जनता के पैसे खाकर मंत्री मोटे हो रहे हैं और आम आदमी इस मंहगाई में दुबला होता जा रहा है. मंहगाई के मुद्दे पर केंद्र सरकार के एक मंत्री कहते है कि "मेरे पास मंहगाई खत्म करने हेतु अलादीन का चिराग नहीं" तो दूसरे मंत्री कहते है की "मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूँ" , तो तीसरे मंत्री कहते हैं कि मैं इसके लिए जिम्मेवार नहीं". दूसरी तरफ यूपीए सरकार कहती है कि मेरा प्रधानमंत्री ईमानदार है और कहीं से दोषी नहीं .स्वाभाविक है शक की ऊँगली प्रधानमंत्री को नियंत्रित करने वाली शक्ति के उपर उठ रही है. आज आम आदमी सोचने के लिए विवश है कि कौन है दोषी ? आम धारणा बन चुकी है की जांच का आदेश हो जाता है फिर गिरफ़्तारी का नाटक होता है . गिरफ्तार होने के बाद , उन्हें फाइव स्टार होटल की सुविधा दी जाती है और तुरंत उन्हें जमानत मिल जाती है .जरा विचार कीजिए देश में अब तक बड़े- बड़े सैकड़ों घोटाले हुए हैं ,परन्तु आज तक किसी दोषी नेता को फांसी की सजा क्यों नहीं हुई है ?घोटाले का पैसा जनता को वापस क्यों नहीं मिलता?क्यों नहीं इसके लिए मजबूत एवं कठोर दंड और कड़े नियम बनाए जाते हैं ? भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई हेतु विशेष न्यायालय तथा त्वरित कारवाई क्यों नहीं होती है?

जहाँ एक ओर देश की 70 % जनता गरीबी रेखा के नीचे जैसे -तैसे अपनी जिन्दगी चला रही है , वहीं कुछ लोग ऐसे हैं जो देश को लूट कर सारा धन विदेश के बैंको में जमा कर देश को खोखला बना रहे हैं . कई देशों ने ऐसे काले धन जमा करने के लिए निजी बैंकिंग शुरू की ओर आज वे देश सिर्फ ऐसे ही लोगों के पैसे से फल फूल रहे हैं , ऐसे बैंक न तो जमाकर्ताओं के नाम बताते हैं और न ही उनकी जमा की गई राशि , लेकिन जब कुछ देशों का दबाब बढ़ा तो बैंकों ने नाम बताने की घोषणा की और उसने कुछ देशों को वहां के जमाकर्ताओं के नाम भी बताये हैं , लेकिन भारत की कमजोर नीतियों के कारण अब तक भारत को उन भष्ट लोगों के नाम नहीं मिल पाए है, जिनकी अकूत संपत्ति वहाँ जमा है. इससे यह भी पता चलता है की सरकार पर ऐसे लोगों का कितना दबाब है. ऐसे लोगों को बेपर्दा किया जाना चाहिए, जो देश को अंग्रेजों की तरह लूट रहे हैं . आश्चर्य की बात तो यह है की सरकार कालाधन को पूर्णरूपेण सरकारी कोष में जमा करने के बजाय उस पर टैक्स लगाने की बात कर रही है .

इस सरकार ने तो हमें अपने ही देश के भू-भाग कश्मीर में तिरंगा फहराने पर प्रतिबंध लगाया है . अब आप ही सोचिये आप स्वतंत्र है या परतंत्र? क्या करे पीड़ित जनता ? क्या है इस समस्या का समाधान ? आज यह प्रश्न हर भारतीय के दिल में उमड़ - घुमड़ रही है . क्या आपने अपने इसी हश्र को पाने के लिए यूपीए सरकार को वोट दिया था ? संकल्प लें कि स्वच्छ , पारदर्शी और भयमुक्त प्रशासन के लिए प्रतिबद्ध वैसी पार्टी को चुनेंगे, जो सुशासन और विकास के मूलमंत्र पर चल सके और अपने वायदों पर खड़ा उतर सके .

"आग बहुत है आम आदमी के दिल में शांत न समझना ,
ज्वालामुखी कि तरह फटी यह आज कल में."



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