खुशियों भरा संसार

मधुरिता 

प्रकृति की गोद में ही जीव आनंदित रह सकता है. जिस प्रकार शिशु अपनी माँ की गोद में चिंता रहित हो कर असीम आनंद की अनुभूती करता है . कोई अन्य व्यक्ति उसे माँ की गोद से ले ले तो  वह रो कर अपना दुःख इजहार करता है. ये तो हुई साधारण सी बात.
हम सबों का भी जीवन लक्ष्य यही होता है की हम सब आनंद में रहें ख़ुशी रहें - लेकिन क्या हम खुश हैं ? नहीं बिलकुल नहीं.
इसका एक छोटा सा कारण  है -- हम अपनी माँ (प्रकृति) से दूर  बहूत  दूर होते गए हैं. आपने कितने दिन पहले कौन सा फूल देखा किस रंग का था ? याद है कुछ देखा हो तब ना बताएँगे.

जिस माँ ने हमे सुख और उतम से उतम साधन प्रदान किया , अब तो मानव पृथ्वी आकाश ही नहीं अपितु  दुसरे ग्रहों पर जा कर जीवन यापन करने की सोच रहा है.  इतनी ऊंचाई पर पहुचने का श्रेय किसको है ?
केवल माँ जिस प्रकृति की गोद में पले बड़े  हुए उसी की हम इतनी अवहेलना करते रहते है. मानव कितना स्वार्थी है?  इसका यह अभिमान ही इसे दुखों के सागर में डुबो रहा है. 

जब हम अपनी माँ को सम्मान ना दे पा रहे हैं -  तो हम और रिश्ते का आदर कैसे कर सकते हैं. सच ही तो है जैसा करेंगे  वैसा भरेंगे.

हमसे तो भले जानवर जीव जंतु सुखी हैं, क्योंकि उसने प्रकृति का सम्मान किया है व उसके आँचल की लाज रक्खी है. तभी उन्हें हमारी तरह तनाव भरा जीवन नसीब नहीं हुआ.

मशीनी युग ने मानव को रोबोट बना डाला, केवल अर्थ की महत्ता रह गयी. मानव मूल्यों को तो भूल ही गए हैं. जीवन को सफल बनाने मैं संतोष धन एक अहम् पहलू है.

आज हर व्यक्ति एक दुसरे से असंतुष्ट नज़र आता है. पति पत्नी से, बच्चे माँ पिताजी से, अफसर अपने स्टाफ से, पडोसी अपने पडोसी से जहाँ देखो वही शिकायत करता नज़र आता है. सब एक दूसरे को दोषी बताते है.

यूँ तो हमारे जीवन शैली मैं ही दोष है, हम हमेशा नकारात्मक विचारों का ही मनन करतें हैं -- बच्चे पढाई नहीं करेंगे तो बड़े होकर सफल नहीं बनेगे. कंही जाते हैं तो चिंता लगी रहती है कि कही एक्सिडेंट तो नहीं हो जाएगा.
इतना ही नहीं हम रोज टीवी मैं भी हमेशा नकारात्मक सीरियल न्यूज़ चैनल आदि देखते रहते हैं. इससे नकारात्मक विचार और भी गहराई से भीतर बैठ जाता है . हम सभी रिश्तों को अजीब दृष्टी से देखने लगते हैं और रिश्तों मैं दूरियां बढती जाती हैं . आजकल पति पत्नी और बच्चों के बीच कि दूरी भी इसी नकारात्मक विचारों से बढती जा रही है .

हम अपनी सोच को यदि सकारात्मक रूप दे सके . साथ ही साथ प्रकृति माँ के नजदीक रहने कि कोशिश करें .
तो हम सभी में सकारात्मक विचारों का बीज डलेगा, जो सफल व उच्च जीवन कि ओरे हमें प्रेरित करेगा .
हम एक स्वस्थ्य विश्वबंधुत्वा कि मजबूत नीव रख सकते हैं .

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