खामोशी की अपनी ही जुबां होती हैं

 प्रवीण कुमार  शर्मा 


खामोशी की अपनी ही जुबां होती हैं
न तुमने कहा

न मैनें कहा


खामोशी ने खामोशी से कहा
आखों की कमी
आखों में नमी

खामोशी है आखों में पानी बनकर
लब सिल गए है आज
मैं कुछ न कहूँगा तुमसे

देखो न ऐसे, अंधेरा है कही
आवाजे, बेचेनी, अकेलापन तन्हाई
और खामोशी है कही

पंखो का गाना
दिवारो पर हलचल
बल्ब पे रंगत देखी 
जब तो लगा

खामोशी की अपनी ही जुबान है।
खामोशी की अपनी ही जुबान है।।

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