द्वारका के जनता फ्लैट्स में पानी की बर्बादी


अनुराग रंजन सिंह 

द्वारका सेक्टर -16 के पाकेट बी में स्थित डी.डी.ए. के जनता फ्लैट्स में रहने वालों की समस्याएं अनगिनत हैं। डी.डी.ए. फ्लैट्स की समस्याओं को लेकर शासन-प्रशासन, डी.डी.ए. या फिर आर.डब्ल्यू.ए. का रवैया हमेशा ही अभावों और बदहाली को जन्म देता रहा है। सूत्रों की माने तो, यहां 1736 जनता फ्लैट्स हैं, वैसे तो सभी फ्लैट्स एलौट किए जा चुके हैं लेकिन उनमें से केवल 400 फ्लैट्स ऐसे हैं जिनमें लोग रहते हैं। बाकी के 1336 ऐसे खाली फ्लैट्स हैं जिनमें रोज सुबह-शाम पानी की सप्लाई की जाती है। बड़ी समस्या यह है कि लगभग सभी वाटर सप्लाई पाईप लाइन्स टूटे हैं या फिर उनसे रिसाव होता रहता है। दूसरा पहलू यह भी है कि कुछ फ्लैट्स के मालिक जो यहां नहीं रहते यह देखने तक नहीं आते कि उनके फ्लैट में पाईप लाइन ठीक है या नहीं। असल में इस समस्या को सुलझाना उनका कत्र्तव्य है। जलापूर्ति ही द्वारका उपनगर की सबसे बड़ी समस्या मानी जाती रही है। जलापूर्ति के संकट से निजात पाने के लिए यहां 7 ट्यूबवेल्स लगाए गए हैं साथ ही साथ 1 लाख लीटर पानी के स्टोरेज के लिए एक अंडरग्राउण्ड टैंक भी बनाया गया है। एल.आई.जी. फ्लैट्स और जनता फ्लैट्स में यहीं से पानी की सप्लाई की जाती है। 

आर.डब्ल्यू.ए. के महासचीव रमेश मुमुक्षु ने बताया कि डी.डी.ए. की दो अलग-अलग ईकाइयां इलेक्ट्रिकल एवं एस.डब्ल्यू.7 जलापूर्ति और ट्यूबवेल्स के रखरखाव की ज़िम्मेदारियां उठाती हैं। इलेक्ट्रिकल के जे.ई का काम आपरेटर को नियुक्त करना है तो, वहीं दूसरी तरफ एस.डब्ल्यू.7 का काम है ट्यूबवेल्स का रखरखाव करना है। ट्यूबवेल्स के रखरखाव के लिए एस.डब्ल्यू.7 ठेकेदारों का मुंह देखती है और ठेकेदार उसके रखरखाव के लिए न्यूनतम तनख्वाह पर लोगों को नौकरी पर रखते हैं। यह भी एक बड़ी समस्या ही है कि कम से कम तनख्वाह पर काम करने वाले लापरवाही से बाज नहीं आते। डी.डी.ए. और ठेकेदार मिलकर नए टेंडर के आने का इंतरजार करते रहते हैं ताकि उनकी आर्थिक आमदनी का ज़रिया चलता रहे।

श्री मुमुक्षु ने बताया कि पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए यहां वाटर सप्लाई टैंकर की सुविधा भी लोगों को मुहैया कराई जाती है लेकिन असल समस्या पानी का रिसाव और बर्बादी है। बहुत बड़ी संख्या में इन फ्लैट्स में रहने वाले लोग पानी का बिल भी नहीं जमा करते और डी.डी.ए. भी इस समस्या पर कोई उचित कार्यवाई नहीं करती बल्कि इस समस्या को जैसे-तैसे रफादफा करने के लिए लोगों के साथ मिलकर पानी के बिल को एडजस्ट करने के फिराक में रहती है। 


लम्बे समय से यह प्रयास रहा है कि किसी भी एक ही डिविजन के तहत इन समस्याओं को सुलझाने की कोशिश की जानी चाहिए। वैसे इन समस्याओं को सुलझाने के लिए तीन अलग-अलग एसडब्ल्यू 6,7 और 9 के डिविजन एक साथ काम करते आए हैं। लोगों का कहना है कि एक जैसी समस्याओं के लिए उन्हें अलग-अलग डिविजन्स को बोलना पड़ता है। उनका कहना है कि इन तीनों डिविजन्स के आपसी तालमेल ठीक न होने के कारण समस्याओं का निराकरण कठिनाई से होता है।

समस्याएं इतनी ही नहीं हैं पानी के मुद्दे को लेकर बागवानी विभाग का कहना है कि पानी की समस्या के कारण पार्कों के रखरखाव में बहुत सारी में कठिनाइयां उभर कर सामने आती हैं। डी.डी.ए. ने इन पार्कों में पानी की सप्लाई के लिए अंडरग्राउण्ड पाइप लाइन्स भी बिछा रखा है लेकिन उनमें पानी की सप्लाई नहीं की जाती। विशेषरूप से बागवानी के लिए डी.डी.ए. के द्वारा अलग से एक ट्यूबवेल लगाया गया है इसके बावजूद भी पानी की सप्लाई का काम ठप पड़ा है। एक तरफ तो पानी की बर्बादी और दूसरी तरफ उसकी अपूर्ति। इन दोनों ही समस्याओं को सुलझाने का काम केवल मात्र सरकार के कंधों पर ही नहीं है। पानी की बर्बादी एक ऐसी सामाजिक समस्या है जिसे लोगों को जागरूक कर सुलझाने का प्रयास किया जा सकता है।


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