मासूम मिथुन का क्या कसूर है?


एस॰ एस॰ डोगरा

दिल्ली मेट्रो में एशिया की सबसे बड़ी उपनगरी के आलीशान फ्लेटों में एक तरफ बच्चे नामी गिरामी स्कूल में शिक्षा तथा खाली समय में खेलों, विभिन कलाओं को सीखने में व्यस्त रहते हैं। वहीं दूसरी ओर, एक गरीब के बच्चे को धन के अभाव के कारण पढ़ाई के अलावा खेलने के लिए कई सुविधाओ से वंचित रहनाजगजाहिर है। 


उसी का एक साक्षात उदाहरण पेश कर रहा हैं एक मासूम निर्धन परिवार का बच्चा। जो सैक्टर-10, द्वारका में सड़क के किनारे पटरी पर मिथुन उम्र लगभग दस वर्ष अपने मासूम बचपन के कोमल जीवन को तपती गर्मी की बिना परवाह किए ये अपने परिवार को दो वक्त की रोटी जुटाने में भुट्टा (मक्का) बेच रहा है। इनके पिता एक मोची का काम करते हैं, लेकिन दिनो-दिन बढ़ती महगाई की मार से बचने के लिए वह पूरे परिवार का पालन-पोषण में सक्षम नहीं है। इसीलिए इस मासूम को मजबूरन यह कठोर कार्य करना पड़ रहा है। इस मासूम की तरह ना जाने कितने ही मासूम गरीब परिवार के बच्चों को अपना उज्जव्वल भविष्य बनाने के लिए स्कूल में पढ़ाई करनी चाहिए लेकिन वह न चाहकर भी खुश गवारबचपन से वंचित हैं। गौरतलब है कि एक बार डॉन बास्को आशरल्य मेँ इटली की निवासी मारिया -समाज सेविका से मिलने का मौका मिला, मैंने उनसे पूछा कि उनके देश में और भारत मेँ क्या अंतर है? उन्होने बड़े सहज भाव से बताया कि उनके देश मेँ मानव सेवा को सर्वोपरि समझा जाता है लेकिन भारत देश धर्म के नाम पर लोग खूब पैसा चढ़ा देते है परन्तु मानव सेवा करने से झिंझकते है।

इसी कमी के कारण यही बच्चे बड़े होकर कुछ रेहड़ी पटरी लगाकर अपने परिवार का पेट भर पाते हैं अथवा चोर/ अपराधी बनकर समाज को कलंकित करते हैं। यदि इन्हे भी मासूम बचपन में शिक्षा ग्रहण करने का सही मौका मिल जाए तो शिक्षा प्राप्त कर जीवन परिवर्तन साबित हो सकता है। इस देश आए दिन नए घोटाले, अपराध, इत्यादि होते रहते  है।  प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक, निगम पार्षद, अधिकारी को इस महान देश के भावी भविष्य की किसी को चिंता ही नहीं है। ऐसे देश का भविष्य भगवान भरोषे है। क्या हम ऐसी लचर व्यवस्था से आदर्श नागरिक व स्वस्थ समाज का निर्माण कर पाएंगे? लेकिन मासूम मिथुन का क्या कसूर है?

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