सच्चा समय

मधुरिता 

ईश्वर की सबसे पहली रचना का नाम समय है. संसार रुपी लीला चलाने के लिए समय को नियुक्त किया गया. समय को चक्र की संज्ञा दी गयी है क्योंकि चक्र के सामान ही न इसका आदि है और न ही अंत.

समय कभी झूठा नहीं होता जिसने अच्चा किया उसके लिए अच्चा होता है जिसने बूरा किया उसके साथ बूरा होता है. समय इंसान को नहीं इंसान समय को बनाता है.

तनिक विचार करके देखें तो हमें अपने कर्मों से जो थोडा समय मिलता है उसे कहाँ  बिताते हैं? बच्चे अपना समय कम्प्यूटर गेम में,  बड़े सिनेमा देखने व् क्लब या बोतल खोल कर इस तरह अपने समय को फालतू कामों मैं ही लगा देते हैं . बहूत कम व्यक्ति हैं जो इस समय को अपने सही  दिशा दे कर अपने जीवन को सफल बनाते हैं.

जीव को स्वयं पता नहीं है की मेरा भला किसमे है. भविष्य को लेकर परेशान होते हैं . पहले समय हमने ठीक से काम नहीं किया, यह तो महसूस नहीं कर पा रहे कि सभी कर्मों का फल है -- हमें विशवास नहीं हो पाता. जानते सभी हैं, अच्छी बातों का ध्यान रखें- अच्छे काम करें तो आज हम किसी को परेशान नहीं करेंगे तो वो भी हमें परेशान नहीं करेगा. जो हमें बुरा -भला कहते हैं हम भी ख्याल रखेंगे------

सात दिन सभी को सामान रूप से दिया गया है लेकिन उसका सही गलत उपयोग भारी अंतर ला देता है. शंकराचार्य को मात्र ३२ वर्ष मिले थे. उन्होंने योग बल से अपना नाम स्वर्ण अक्षरों मैं अंकित किया. ऐसे ही मीराबाई, विवेकानंद, रामानुजम किस किस का नाम -------------

समय को महाकाल की संज्ञा दी जाती है. सच ही तो है बीता समय हमें वापिस नहीं मिलता वो तो काल का भोजन है. अपने मन को अंतर्मुखी कर परमात्मा मैं लीं हो जाना. ऐसा कहा जाता है कि साधक जब समाधि की अवस्था मैं चला जाता है तो साधक सिद्ध हो जाता है। उसके लिए समय को लोप हो जाता है इसलिए जब वह समाधि अवस्था से जगता है तो उसे समय का ज्ञान नहीं रहता। उसे ऐसा लगता है कि वह कुछ ही क्षणों में जागा  हैं, जबकि उसकी समाधि कई सालों की हो सकती है. गोपियों के लिए रास लीला एक ही रात्रि की थी परंतू वह  रासलीला प्रत्यक्ष मैं एक महीने तक चली थी. समय भी इश्वर की ही रचना है. अतः समय के चक्रव्यूह को तोडा जा सकता है इश्वर की पूर्ण शरणागति से ही. 

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