’इंडिया इज़‘ में अनुराग कश्यप की फिल्मों का चयन

प्रेमबाबू शर्मा 

कान फिल्म समारोह में प्रदर्शित अपनी लघु फिल्म से तारीफ बटोरने वाले फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप का कहना है कि लघु फिल्में ही भारतीय सिनेमा का भविष्य निर्धारित करेंगी। कश्यप ने कहा कि भारतीय सिनेमा का भविष्य लघु फिल्में ही निर्धारित करेंगी, न कि मुख्यधारा की वे फिल्में जिनकी किस्मत का फैसला हर शुक्रवार की रात होता है। हकीकत में, लघु फिल्मों ने इसे पहले ही पुनर्परिभाषित कर रखा है। इन फिल्मों ने हमें एक नया
दष्टिकोण दिया है, जो शायद ही एक बड़े बजट की फिल्म दे पाती।

अनुराग कश्यप
ये फिल्में विदेश मंत्रालय के सार्वजनिक कूटनीति प्रभाग के तत्वाधान में संचालित वेब आधारित अभियान इंडिया इज का हिस्सा हैं। विदेश मंत्रालय और यू टयूब के बीच सार्वजनिक निजी भागिदारी के तहत बनी इन पांच फिल्मों के शीर्षक- ‘हिडेन क्रिकेट’, ‘गीक आउट’, ‘चाय’, ‘मोइ मुरजानी’ और ‘एपीफेनी’ हैं।

कश्यप के साथ ‘डेव डी’, ‘शोर’ और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी उनकी कुछ पिछली फिल्मों में काम कर चुके उभरते हुए युवा निर्देशकों ने ही इन फिल्मों का निर्देशन किया है। इसके साथ ही कश्यप ने कहा कि लोगों को लगता है कि फीचर फिल्में बनाना बेहद मुश्किल है। लेकिन इससे कहीं ज्यादा मुश्किल एक लघु फिल्म बनाना होता है। ये फिल्में जिस भारत और उसके विजुअल अपील को प्रदर्शित कर रही हैं, वह मुख्यधारा की फिल्म कभी नहीं कर पाती।

एकेएफपीएल द्वारा वायकाम 18 मोशन पिक्चर्स के सहयोग से तैयार ये पांच फिल्में युवा भारत की विभिन्न खूबियों, संस्कृति, आकांक्षाओं और सपनों को अंतरराश्ट्रीय दर्षक वर्ग के समक्ष दिखलाती हैं। यू ट्यूब पर फिल्मों के लान्च के मौके पर मौजूदरीवा गांगुली दास, संयुक्त सचिव तथा प्रमुख, पब्लिक डिप्लोमैसी डिवीज़न, विदेश मंत्रालय ने कहा, ’’इंडिया इज़ विदेश मंत्रालय की पब्लिक डिप्लोमेसी डिवीज़न का पहला वेब आधारित अभियान है जिसे विदेश मंत्रालय ने दुनियाभर में लोगों के साथ संपर्क बढ़ाने और उन्हें भारत के बारे में सोचने को प्रेरित करने के मकसद से शुरू किया है। ’इंडिया इज़‘ का दूसरा साल है और हम इसे मिल रही प्रतिक्रियाओं को देखकर बेहद खुश हैं। अब हमें पूरा विष्वास है कि इन पांच फिल्मों के साथ हम ज्यादा से ज्यादा भारतीयों को आगे बढ़कर इस पहल में भागीदारी करने तथा इंडिया ब्रैंड को दुनियाभर में स्थापित करने में मददगार साबित होगी।‘‘

इन पांच फिल्मों के लान्च के मौके पर राजन आनंदन, उपाध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, गूगल इंडिया ने कहा, ’’यू ट्यूब ने भारत में खासी गतिशीलता बनायी है और यह एशिया में एक्शन का केंद्र है।

इन फिल्मों की कहानी:

लोक शर्मा की हिडन क्रिकेट
इस फिल्म में दिखाया गया है कि क्रिकेट किस तरह से हर भारतीय की जिंदगी का हिस्सा है। और क्रिकेट के साथ इस देष का नाता हर परंपरा तथा हर नियमों से परे हैं। सीमाओं से पार जाने से लेकर हैरतंगेज बुलंदियों तक, लाखों दर्षकों की हौंसला अफज़ाई और करोड़ों आह, यही है इस खेल का पागलपन और यही है।

गीतांजलि राव की चाय
यह फिल्म अलग-अलग मोन्टाज का क्रम है जो चार अलग-अलग लोगों को एक चाय की दुकान में दिखाती है। हमें चार अलग-अलग प्रकार प्रकार के जीवन के नज़रिए को जानने-समझने का मौका मिलता है। एक 10 साल का मासूम लड़का है जो अपने गांव में हिंसक जिंदगी से बचकर भाग निकला है, एक उत्साही लड़की है जिसने बाल विवाह से इंकार कर दिया है, एक कुछ बेहतर और एडवेंचर से भरपूर कष्मीरी युवक है जो पत्थर फेंकने के झूठे आरोपों से बच निकला है और एक बूढ़ा, बुद्धिमान, सनकी मलयाली है है जो तेज रफ्तार बदलावों की प्रक्रिया को लेकर सषंकित है। वही बदलाव जिसे फिल्म के बाकी तीन युवा अपना रहे हैं। और यह सब दिखाया जाता है चाय के एक कप के बहाने!

वसन बाला की गीक आउट
यह फिल्म एक ऐसे गीक के जीवन को दिखालाती है जो इंटरनेट से खुद को सशक्त और समर्थन बनाए हुए है। जिस तरह का दोगली जिंदगी हम जीते हैं, वही आभासी अहम् जिसे हम सहलाते और मजबूत बनाते हैं, हिंदुस्तानी ’गीत‘ आज वो लड़का नहीं रह गया है जो कोने में बैठा दिखता था। वो कुछ भी हो सकता है, इंस्टाग्राम पर सावधानीपूर्वक फ्रेम की गई तस्वीर या बेहद विशाक्त विचारधारा वाला ट्विटर हैंडल या पाप दर्शन को बखारता कोई फेसबुक पेज या फिर कोई ऐसा क्रांतिकारी ब्लाग जिसकी शुरूआत दुनिया को बदल देने के इरादे के साथ हुई थी, या फिर आडियो-विजुअल ब्लैक होल यानी ’यू ट्यूब‘ में घुसा हुआ, खोया हुआ इंसान। हवाई किले बनाने का आजकल नया अड्डा है, जिसे वल्र्ड वाइड वेब के नाम से जाना जाता है। लगे रहो अपने ख्वाबों का महल खड़ा कने में! ईश्वर आपको ताकत दे ऐसा करने, हे गीक!

अनुभूति कश्यप  की मोई मरजानी
यह फिल्म है एक हिम्मती, जज़्बे से भरपूर आत्मनिर्भर एकल मां की कहानी जो अपने लिए और अपने बेटे के लिए सुकूनभरी जिंदगी की खातिर संघर्षरत है। वह पटियाला, पंजाब में एक छोटा सा इंटरनेट कैफे चलाती है। यह फिल्म उसकी जिंदगी में उस दौर को दिखलाती है जब प्यार उसके दरवाजे पर आकर ठिठक गया है! काश उस प्यार की दस्तक का वक्त भी माकूल होता!

नीरज की एपिफैनी
पुणे में कालेज रीयूनियन के बाद, एक तलाकशुदा जोड़े को मजबूरन एक साथ मुंबई जाना पड़ा है। हाइवे पर उनकी मुलाकात एक वृद्धा से होती है जिसे उनकी सहायता की जरूरत है, लेकिन उनकी नैतिकता के अलग-अलग संदर्भ, उनकी संस्कृति और उनके वर्ग भेद फिर से उनके बीच टकराहट पैदा करते हैं और एक बार फिर वो जख्म हरे होने लगते हैं जिन्हें लेकर वे इस मुगालते में थे कि वक्त ने उन पर मरहम रख दिया होगा। बेशक, कुछ सफर आपको कहीं किसी मंजिल तक नहीं ले जाते, लेकिन इतना भी तय है कि आप आगे बढ़ते हैं।

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