गायत्री मन्त्र - सूर्य विज्ञान


गीता  झा 

सूर्य 

सूर्य के सम्बन्ध में हम सभी लोग सोचते हैं की यह कोई निष्क्रिय प्रचंड अग्नि का गोला मात्र है। सूर्य निर्जीव अग्निपिण्ड मात्र नहीं है जैसा की भौतिक विज्ञान की दृष्टी से माना जाता है | यह समस्त संसार का प्राण है। अत्यंत सक्रिय , जीवंत अग्नि संगठन है। हर क्षण सूर्य की तरंगों में विशेष प्रकार के रूपांतरण होते रहते हैं। सूर्य पर होने वाला तनिक सा भी रूपांतरण, विस्फोट पृथ्वी और समस्त वातावरण को प्रभावित करता है।

पृथ्वी का सारा क्रियाकलाप अथवा दुनिया रूपी कारखाने का सञ्चालन सूर्य से मिले प्रकाश, गर्मी और आकर्षण बल द्वारा होता है। प्रकाश के बिना सारी पृथ्वी अंधकार में डूब जाएगी , ताप के आभाव में यह बर्फ से अधिक ठंडी हो जाएगी ,उस दिशा में जीवन नाम की कोई वस्तु उस पर नहीं रहेगी, साथ ही किसी अन्य ग्रह की आकर्षण शक्ति से खिंच कर अन्यंत्र चली जाएगी |

जिस प्रकार आत्मा के निकल जाने से शरीर सड -गल जाता है उसी प्रकार सूर्य की दी हुई आकर्षण शक्ति के ना रहने से भूमंडल का कण-कण बिखर जायेगा और प्रलय की स्थिति बन जाएगी। सूर्य के कारण ही यह संगठित रूप मैं है। पदार्थों में जो विशेषताएं पाई हैं वे सब सूर्य की किरणों से अभिभूत है। दिन-रात-मास -वर्षा और ऋतुओं का कर्ता सूर्य है अतः इसका एक नाम '"कालकर्ता" भी है सूर्य के प्रभाव की व्यापकता को देख कर भारतीय विद्वानों ने सभी शास्त्रों का मेरुदंड सूर्य को माना है।


गायत्री मन्त्र में ईश्वर से यही माँगा है की -प्रभु हमें अपने मानव शरीर देकर अनुकम्पा की है | अब मानव बुद्धि देकर हमें उपकृत और कर दीजिये ताकि हम सच्चे अर्थों में मनुष्य कहला सकें और मानव जीवन के आनंद का लाभ उठा सके।

उसी प्रकार गायत्री मन्त्र से परमात्मा की स्तुति, ध्यान और प्राथना का समावेश है। इस प्रकार एक ही मन्त्र में उक्त बातों का समावेश नहीं मिलता है। छंद का नाम गयात्री होने के कारण इस मन्त्र का नाम गायत्री रखा गया है।

गायत्री का मूल सम्बन्ध सविता यानि सूर्य से है | सूर्य के उदय होने पर लोक में प्रकाश होता है और अन्धकार का विनाश होता है। सविता यधपि सूर्य को ही कहा जाता हैं लेकिन उसमें वही अंतर है जो आत्मा और शरीर में है।
मन्त्र विज्ञान में शब्द शक्ति का प्रयोग है। मन्त्र के अक्षरों का अनवरत जप करने से उसका एक चक्र बन जाता है और उसकी गति सुदर्शन चक्र जैसी गति विद्युत चमत्कारों से परिपूर्ण होती है। मन्त्र शब्द बेधी बाण की तरह काम करते हैं। जो अभीष्ट लक्ष्य को बेधते हैं।

गायत्री मन्त्र में गायत्री छंद , विश्वामित्र ऋषि और सविता देवता हैं।श्रुति में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। उसी से प्राण प्रादुर्भाव होता है। जिसके कारण प्राणियों का शारीर धारण करना, वनस्पतियों का उगना, पञ्च तत्वों का सक्रिय होना संभव है।

मानव शरीर 24 तत्व विशेष का बना होता है। चेतन्य, आत्मा, मन , बुद्धि, ष्ट धातु, पञ्च ज्ञानेद्रियाँ , पञ्च कर्मेन्द्रिया और पञ्च महाभूत |

गायत्री मन्त्र के 24 अक्षरों का गुंथन इस प्रकार जुड़ा हुआ है की उसके उच्चारण से जिह्वा, मुख, तालू की ऐसी नाड़ियों का क्रमबद्ध सञ्चालन होता है की जिसके कारण शरीर के विभिन भागों में स्थित यौगिक चक्र जागृत होते हैं। जैसे कुंडली जागरण से षष्ट चक्र जागृत किये जातें हैं वैसे ही गायत्री के उच्चारण मात्र से लघु ग्रंथियों को जागृत कर आश्चर्यजनक सकारात्मक परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

गायत्री मन्त्र का सूर्य विज्ञान
प्रत्येक वेद मन्त्र का एक देवता होता है जिसकी शक्ति से मन्त्र फलित और सिद्ध होता है । गायत्री महामंत्र का देवता सविता या सूर्य है। गायत्री मन्त्र की शक्ति सूर्य पर ही अवलंबित है । गर्मी, प्रकाश और रेडिएशन सूर्य की स्थूल शक्ति है इसके अलावा समस्त प्राणियों को उत्पान करने , उनके पोषण करने और अभिवर्धन करने की जीवनी-शक्ति उसकी सूक्ष्म शक्ति है।

आध्यात्म विज्ञान में प्रकाश की साधना और प्रकाश की याचना की चर्चा मिलती है। यह प्रकाश किसी बल्ब, बत्ती, दीपक,सूर्य या चन्द्र से निकलने वाला नहीं वरन परम ज्योति है जो इस विश्व में चेतना बन कर जगमगा रही है। गायत्री के उपास्य सविता भी इसी परम ज्योति को कहते हैं। इसका अस्तित्व ऋतंभरा[metaphysical ]प्रतीक के रूप में सृष्टि के कण-कण में हैं। इसकी जितनी अधिक मात्र जिसके भीतर होगी उसमें उतना ही दिव्य अंश आलोकित होगा।

गायत्री महामंत्र का देवता सूर्य महाप्राण है जो जड़ जगत में परमाणु और चेतन जगत में चेतना बन कर तरंगित है। सूर्य के माध्यम से प्रस्फुटित होने वला महाप्राण इश्वर का वह अंश है जिससे इस अखिल सृष्टि का संचालना होता है।

सूर्य का सूक्ष्म प्रभाव शारीर के अलावा सूर्य मन और बुद्धि को भी प्रभावित करता है। इसलिए गायत्री मन्त्र द्वरा बुद्धि को सत्मार्ग की और प्रेरित करने की प्रार्थना सूर्य से की जाती है।

गायत्री मंत्र एक महामंत्र हैं जो प्रत्येक मन्त्र साधक और मंत्र के अधिष्ठाता - देव -सूर्य के मध्य एक अदृश्य सेतु का कार्य करता हैं । जब हम गायत्री -मंत्र का क्रमबद्ध, लयबद्ध और वृताकार क्रम से जाप करतें हैं तो ब्रह्माण्ड के मानस -माध्यम में एक विशिष्ट प्रकार की असाधारण तरंगें उठती हैं जो स्प्रिंगनुमा- पथ spiral -cirulatory –path का अनुगमन करती हुई सूर्य तक पहुँचती हैं | और उसकी प्रतिध्वनी BOOMERANG या प्रत्यावर्ती - बाण के पथ के सामान लौटतें समय सूर्य की दिव्यता,प्रकाश,तेज, ताप और अन्य आलोकिक गुणों से युक्त होती हैं और साधक को इन दिव्य - अणुओं से भर देतीं हैं. साधक शारीरिक,मानसिक और अध्यात्मिक रूप से लाभान्वित होता हैं.

गायत्री मन्त्र द्वारा हम अपने अन्दर के काले, मटमैले और पापाचरण को प्रोत्साहन देने वाले प्रकाश अणुओं को दिव्य, तेजस्वी, सदाचरण, शांति और प्रसन्ता की वृद्धि करने वाले मानव-अणुओं में परिवर्तित करते हैं। विकास की इस प्रक्रिया में किसी नैसर्गिक तत्व, पिंड या गृह-नक्षत्र की सांझेदारी होती है। जैसे गायत्री मन्त्र की उपासना से हमारे भीतर के दूषित प्रकाश अणु को हटाने और उनके स्थान पर दिव्य प्रकाश अणु भरने का माध्यम गायत्री का देवता सविता अर्थात सूर्य होता है।

गायत्री विज्ञान ही सूर्य विज्ञान है ।सूर्य विज्ञान के अनुसार सभी पदार्थ सूर्य रश्मि वर्णमाला के विभिन्न प्रकार के संयोगों से उत्पन्न होते हैं। सभी पदार्थ इस वातावरण में उपस्थित हैं कुछ व्यक्त हैं और कुछ अव्यक्त , गायित्री के उच्च कोटि साधना से व्यक्त को अव्यक्त और अव्यक्त को व्यक्त किया जा सकता है। सूर्य रश्मि वर्णमाला को भली भांति जान कर प्रकृति और पदार्थों में परिवर्तन, विधटन और संगठन करने की समर्थ प्राप्त की जा सकती है | सूर्य रश्मियों के माध्यम से अणुओं में परिवर्तन लाया जा सकता है और एक अणु का दूसरे अणु में रूपांतरित किया जाना संभव होता है ।

गायत्री मन्त्र के प्रभाव 
सूर्य परब्रह्म की प्रत्यक्ष प्रतीक प्रतिमा है। यह जड़ और और चेतन के अस्तितिव को बनाये रखता है। पञ्च प्राण उसी से आते है। उसकी आराधना से हम अपने आन्तरिक चुम्बकत्व संकल्प शक्ति से अभिष्ट मात्र में अभिष्ट स्तर के प्राण आकर्षित और धारण कर सकते हैं।

गायत्री उपासना से सूर्य के विद्युत-चुम्बकीय प्रवाह से पीनल ग्रंथि का सम्बन्ध जुड़ जाता है और सूर्य तेज के कण हमारे शरीर में प्रवेश करते चले जातें है | इस प्रकार प्राण शरीर विकसित होते जाता है और सूर्य प्रकाश के सामान हल्का , दिव्य और तेजस्वी होता जाता है।

सर्प्रथम अनुभव होता है -भ्रूमध्य यानि दोनों भोहों के बीच प्रकाश का अनुभव होना । कुछ समय बाद व्यक्ति की नींद और भूख में क्रमशः कमी आना।मन का स्वतः ही शांत होना। लम्बे समय के जाप के बाद दोनों स्वर -इडा और पिंगला का साथ-साथ चलना । गायत्री मन्त्र के द्वारा विचार संशोधन और भावनात्मक परिष्कार होता है |

गायत्री मन्त्र जाप से मस्तिष्क के दोनों हेमीस्फेरिक सिमिट्री पर प्रभाव पड़ता है | दायें और बाये दोनों गोलार्ध अपनी उन्नत अवस्था में आ जाते हैं और दोनों के क्रियाकलाप के मध्य अधिक सामंजस बैठ जाता है।

गायत्री मन्त्र का प्रभाव सोलर-प्लेक्सस में भी होने से त्वचा की प्रतिरोधी क्षमता भी असाधारण रूप से बढती जाती है।

स्थूल शरीर [physical body]
स्थूल शरीर में सूर्य की किरणें आरोग्य, तेज, बल ,स्फूर्ति, ओज ,उत्साह,आयुष पुरषार्थ बलवर्धन करती हैं | शरीर के समस्त अंग-प्रत्यंग सविता की किरणों द्वारा लाभान्वित होते हैं। सभी परिपुष्ट और क्रियाशील बनतें हैं।

सूक्ष्म शरीर [subtle body]
सूक्ष्म शरीर मस्तिष्क प्रदेश में उसका प्रवेश बुद्धि, वैभव और प्रज्ञा उत्साह ,स्फूर्ति,प्रफुल्लता,साहस ,एकाग्रता, स्थिरता, धेर्य,संयम अनुदान की वर्षा करता है।

कारण शरीर [casual body]
कारण शरीर यानि ह्रदय प्रदेश में भावना, श्रद्धा, त्याग, तपस्या, श्रद्धा, प्रेम,उपकार,विवेक,दया और विश्वास और सद्भावना की वृद्धि करता है।

अंधकार रूपी विकार , इस प्रकाश से तिरोहित होता है, व्यक्तित्व निखरता है और स्थूल शरीर को ओजस, सूक्ष्म शरीर को तेजस और कारण शरीर को वर्चस्व उपलब्ध होता है।

जैसे गाय सब पशुओं में, गंगा सब नदियों में तुलसी सब औषधियों में विशेष लाभकारी है वैसे ही गायत्री शक्ति समस्त ईश्वरीय देव -शक्तियों में अधिक उपयोगी है।

यधपि किसी मन्त्र की शक्ति को न्यून तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन महामंत्र गायत्री को यह कहना पड़ता है की यह सर्वोपरी मन्त्र विपुल शक्ति संपन्न अपने में एक विशेष विलक्षणता रखता है।

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