श्री मिश्र ने अधोलिखित स्वरचित कविता द्वारा सभी उपस्थित व्यक्तियों का आभार प्रकट किया|
गद्गद हृदय आज है मेरा, देख आपका इतना प्यार
मुझको बचपन याद दिलाता, ये भाव भरा व्यवहार
मेरी साँसों में निर्मित होता, अब एक नया संसार
दिन दूना और रात चौगुना,यूँ ही बढ़ेगा अपना प्यार
आज आपने इन पुष्पों में,गूँथ दिए है कितने सपने
जैसे खुद घर आन मिलें, सदियों से बिछड़े अपने
आप सबने प्रियवर मुझको, इतना ऊँचा उठा दिया
एक ज़र्रे को जैसे पल में, आसमां पर बिठा दिया
आस्मान में चंदा सूरज, और जगमग करते तारे
इसी प्यार की लालसा में,इस धरती को ओर निहारें
शब्द नहीं हैं पास मेरे, कैसे प्रकट करूँ आभार
जीवनभर ना भूल सकूंगा, किया आपने जो सत्कार