और वो कह कह के निकल गये बेजान हमें ही

शोभित चौहान 

दुनिया ने कुछ ना समझा, तूने भी कुछ ना समझा...
जहाँ देखा अपने तो मिले, पर अपना कोई ना हुआ...
जब भी चाहा कुछ होगा हासिल, सपना कोई पूरा ना हुआ...
टूटे सपनों की कहानी है ये उसकी, जो सपने देखना ना भूला...

कोशिशें कम ना थी पर इम्तिहान ज़्यादा हो गये...
पार करते करते फ़ासले और अधिक हो गये....

बस कुछ यूँ हुआ के उनके लिए जान निकाल के रख दी...
और वो कह कह के निकल गये बेजान हमें ही...
ऐसी जान देखी हैं उन्होने अनगिनत, गिनती उनकी ख़तम हो गयी...
बस ये ही हुआ और कुछ आगे होने के लिए साँसें ख़तम हो गयीं...

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