कभी तू अन्दर कभी है बाहर.............जन्माष्टमी स्पेशल



कभी तू अन्दर कभी है बाहर ......कहीं तू मोहन ..... कहीं तू मोहन .....कहीं तू मोहन .....|

ढूँढत ढूँढत थक गईं अब तो .....ढूँढत ढूँढत......थक गयी कासे कहूं मैं मन की बात ओ मोहन .......|

कभी तू अन्दर कभी है बाहर .....कहीं तू मोहन ..... कहीं तू मोहन .....कहीं तू मोहन .....|

ऐसा भटकाया तूने कहीं दर्शन नहीं दिखाया रे ..... द्वंद्व में इतना उलझाया है तूने ..... समझ में कुछ नहीं

आता रे ...... कभी तू अन्दर कभी है बाहर ......कहीं तू मोहन ...... कहीं तू मोहन ......कहीं तू मोहन ......|

अब तो आँख मिचौनी छोड़ दे मोहन...... सूरदास से बांह छुड़ात हो मोहन......हमसे भी दूर यूँ जात हो.....|

कभी तू अन्दर कभी है बाहर .....कहीं तू मोहन ..... कहीं तू मोहन ......कहीं तू मोहन ....|

क्या कभी हम पर दया न करोगे ओ मोहन .....एक आस जगा के ओ मोहन ......हमें यूँ तो न भुलाओ मोहन ...... हमें यूँ तो न भुलाओ मोहन .....|

कभी तू अन्दर कभी है बाहर ......कहीं तू मोहन ..... कहीं तू मोहन .....कहीं तू मोहन ......|

स्वरचित भजन  - मधुरिता 

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