मंथन

प्रो. उर्मिला पोरवाल (सेठिया)

आजकल सभी व्यक्तियोँ के बीच तुलना करने की भावना जागृत हो गई हे वे सभी एक दूसरे के जीवन को आनंदमय समझते इसलिए स्वयम के जीवन से सबको निराशा रहती है... जरा सोचिए यदि प्रकृति भी एेसा सोचने लगे तो क्या होगा... कमल का फूल सोचे कि काश मेरे अन्दर गुलाब जैसी खुशबू आ जाती या गुलाब का फूल सोचे कि काश मैं कमल जैसा हो जाता.चन्द्रमा सोचे कि काश मेरे अन्दर सूर्य जैसे ऊष्मा आ जाती या सूर्य सोचे कि काश मेरे अन्दर भी चन्द्रमा जैसी शीतलता आ जाती.

जरा कल्पना कीजिये यदि सारे फूल एक ही रंग के होते,यदि हमेशा एक जैसा ही मौसम होता,यदि दिन ही दिन या रात ही रात होती तो क्या होता, लेकिन वो ऐसा नहीं सोचते.वो खुश हैं,आनंदित हैं अपने आप में,क्योंकि विविधता ही प्रकृति का सौंदर्य है फिर हम क्यूँ दूसरो से तुलना करके उसके जैसा ही बनना चाहते हैं.खुद अपने जैसा क्यूँ नहीं बनना चाहते.क्यूँ दूसरो की नजर से अपने आपको देखते और तौलते हैं.खुद को अपनी नजर से क्यूँ नहीं तौलते.दूसरो से तुलना क्यूँ करते हैं.खुद की तुलना खुद से ही क्यूँ नहीं करते.यह देखने के बजाय कि दूसरो की तुलना में हम कंहा खड़े है ,यह तुलना क्यूँ नहीं करते कि बीते हुए कल की तुलना में हम आज कंहा खड़े हैं.

जब हम दूसरो की तरह बनने की कोशिश करते हैं तो अपनी स्वाभाविकता खो देते हैं. फलत: दूसरो की तरह तो बन नहीं पाते लेकिन अपना वजूद खो बैठते हैं. दूसरो से तुलना आत्मविश्वास की कमी का परिचायक होता है, जिसका सीधा अर्थ यह होता है कि आप अपने वजूद को, अपने अस्तित्व को अपमानित कर रहे होते हैं और साथ ही अपमानित कर रहे होते हैं उस विधाता को भी जिसने आपको बिलकुल आप जैसा बनाया है.
जिस तरह परिवर्तन जगत का शाश्वत नियम है उसी तरह विविधता भी संसार का शाश्वत नियम है.
दूसरो से तुलना का सीधा अर्थ यह भी है कि आप अपने वजूद से संतुष्ट नहीं है. आप खुद पर शर्मिंदा हैं.और जब आपकी नजर में ही आपका सम्मान नहीं है तो दूसरो से आप सम्मान की उम्मीद कैसे कर सकते हैं, इसलिए यह जरूरी है कि आप खुद को सम्मान देना सीखे. खुद का आकलन दूसरो की नजर से न करे क्यूंकि कोई भी कभी भी किसी के जैसा नहीं हो सकता,सिर्फ अपने जैसा ही होकर कुछ कर सकता है.

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