फिल्म समीक्षा - बॉम्बे वेलवेट


चन्द्रकांत शर्मा 

कलाकार: रणबीर कपूर, अनुष्का शर्मा, करण जौहर, के.के. मेनन, मनीष चौधरी, सत्यदीप मिश्रा, विवान शाह
निर्माता: विक्रमादित्य मोटवाने, विकास बहल
निर्देशक: अनुराग कश्यप
कहानी: ज्ञान प्रकाश
संगीत: अमित त्रिवेदी
'बॉम्बे वेलवेट' डायरेक्टर अनुराग कश्यप की करीबन आठ वर्ष की रिसर्च वर्क व मेहनत का नतीजा है। अनुराग लीक से हटकर व एक्सपेरिमेंटल सिनेमा के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने इससे पहले भी गुलाल, ब्लैक फ्राइडे व गैंग्स आॅफ वासेपुर जैसी फिल्में बनाई हैं परन्तु इस फिल्म को बनाने में उन्होंने बहुत बड़ा जोखिम उठाया है क्योंकि इस फिल्म में 1949 की मुम्बई को हू-ब-हू परदे पर उकेरना कोई आसान काम नहीं था। इस फिल्म को अगर आप देखेंगे तो आपको यही लगेगा कि आप 60 के दशक की मुम्बई में आ गए हैं। इंटरवल से पहले फिल्म की रफ्तार काफी सुस्त है। कई बार तो ऐसा लगता है कि शायद फिल्म में इंटरवल ही नहीं है परन्तु इंटरवल के बाद फिल्म रफ्तार पकड़ती है और अपने सही मुकाम तक पहुंचती है।

कहानी: इस फिल्म की कहानी शुरू होती है भारत देश की आजादी के बाद यानि सन् 1949 की बॉम्बे (मुम्बई) से। जॉनी बलराज (रणबीर कपूर) मुम्बई के रेड लाइट एरिया में पला-बढ़ा है परन्तु उसके सपने बड़े हैं। अपने सपनों को पूरा करने के लिए कभी वो बॉक्सिंग फाइट में हिस्सा लेता है तो कभी चोरी करता है। इन सभी कामों में उसका साथ देता है उसका खास दोस्त चिम्मन (सत्यदीप मिश्रा)। इसी बीच एक क्लब में जॉनी को रोजी (अनुष्का शर्मा) दिखाई पड़ती है, जोकि एक जैज सिंगर है। जॉनी उसे देखते ही दिल दे बैठता है और पैसा कमाने के लिए कोई मोटा हाथ मारना चाहता है। मोटा हाथ मारने के लिए वह एक बैंक में जाता है, जहां बैंक का एक कस्टमर कैजाद खम्बाटा (करण जौहर) अपनी मोटी रकम निकलवा रहा होता है। जॉनी खम्बाटा को डराने की कोशिश करता है परन्तु खम्बाटा स्वयं ही उसे अपना रूपयों से भरा बैग दे देता है और अपने साथ काम करने की पेशकश करता है, जोकि जॉनी स्वीकार कर लेता है। खम्बाटा जॉनी को बॉम्बे वेलवेट क्लब खोलकर देता है और जॉनी को लगता है कि शायद अब उसकी मंजिल नजदीक है। परन्तु कहानी में रोचक मोड़ तब आता है जब जॉनी ज्यादा पैसे के लालच में खम्बाटा के खिलाफ हो जाता है। अब देखना यह है कि क्या जॉनी अपने मकसद में पास हो पाता है? क्या जॉनी व रोजी का प्यार परवान चढ़ पाता है? यह जानने के लिए तो आपको 60 के दशक के बॉम्बे वेलवेट में जाना पड़ेगा।

अभिनय: रणबीर कपूर ने जॉनी के किरदार में जीवंत अभिनय किया है। एक इंटरव्यू के दौरान रणबीर ने कहा भी था कि जब उन्हें बॉम्बे वेलवेट की कहानी का पता चला तो उन्होंने स्वयं अनुराग कश्यप से मिलकर जॉनी के रोल करने के लिए डिमांड की थी। रोजी के किरदार में अनुष्का ने भी अपना शत प्रतिशत दिया है। करण जौहर ने अपने दमदार अभिनय से साबित कर दिया है कि वो एक अच्छे डायरेक्टर होने के साथ-साथ एक अच्छे एक्टर भी हैं। अन्य कलाकारों में के.के. मेनन, सत्यदीप मिश्रा, मनीष चैधरी व विवान शाह ने भी अपने किरदार बखूबी निभाए हैं।

संगीत: अमित त्रिवेदी ने फिल्म के दौर के हिसाब से अच्छा संगीत दिया है। फिल्म के गीत ‘फिफ्फी’ व ‘मोहब्बत बुरी बीमारी’ थिएटर से निकलने के बाद आपकी जुबां पर चढ़े रहेंगे।

डायरेक्शन: अनुराग कश्यप के बेहतरीन डायरेक्शन की सराहना करनी होगी कि उन्होंने 60 के दशक की मुम्बई, कलाकारों के पहनावे व स्टाइल तथा उस दौर का म्यूजिक को हू-ब-हू सिल्वर स्क्रीन पर उकेरा है। हालांकि अगर वो फिल्म की रफ्तार को थोड़ा तेज रखते, तो फिल्म ज्यादा अच्छी बन सकती थी।

निष्कर्षः यह फिल्म आम दर्शकों के लिए नहीं है। इस फिल्म में आपको रीयल सिनेमा देखने को मिलेगा। जो लोग फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं या इस इंडस्ट्री में आना चाहते हैं तो उन्हें यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए क्योंकि इस फिल्म से आपको सिनेमा की बारीकियां पता चलेंगी। एंटरटेनमेंट की चाह में अगर आप इस फिल्म को देखने जाएंगे तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी।

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