सर्वाधिकार प्राप्त सशक्त जीडीए का गठन समय की मांग।

S.P.Gupta, IAS (Retd.)
गुडगांव -गुडगांव डेवलपमेंट अथोरिटी के गठन का निर्णय प्रदेश सरकार ने शहर के विकास, लोगों की आवश्यकताओें व आकांक्षाओं को देखते हुए आखिरकार ले ही लिया। हरियाणा विधानसभा का सत्र 27 फरवरी से शुरु हो रहा है और पूरी संभावना है कि इस सत्र में जीडीए के गठन का बिल रखकर इसको पास कराने की कोशिश की जाएगी। यहां यह बताना जरुरी है कि जीडीए के गठन की मांग वर्ष 2005 -06 में उठनी शुरु हुई थी जब मैं गुडगांव में हुडा प्रशासक था। हुडा प्रशासक के तौर पर महसूस किया कि प्रशासक के पास वित्तिय सहित अन्य शक्तियां न के बराबर थी। हुडा प्रशासक के पास केवल दस लाख रुपये तक के काम कराने की शक्ति थी। इसी कारण लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता था। इस मुद्दे को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र सिंह हुडडा से बात की और बताया कि एक साधारण नगर परिषद/ नगर पालिका, नगर निगम के प्रशासक/ कमिश्नर अपने स्तर पर एक करोड रुपये के विकास कार्य करा सकता है लेकिन हुडा प्रशासक को केवल दस लाख की ही शक्ति थी। इस बात से सहमति जताते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री हुडडा ने एक करोड रुपये के काम कराने के अधिकार हुडा प्रशासक को प्रदान करने के निर्देश उस समय के मुख्य प्रशासक श्री एसएस ढिल्ली को दिए। लेकिन उन्होंने अपने अधिकार में हनन माना और केवल पचास लाख रुपये तक के काम कराने की शक्ति तो प्रदान करने के आदेश बार बार पैरवी करने के बाद देने पडे लेकिन इसके लिए तकनीक मंजूरी की शक्ति अपने पास चंडीगढ इस तर्क के साथ रख ली की इसके लिए गुडगांव में चीफ इंजीनियर का पद होना जरुरी है। ऐसे में स्थिति वही ढाक के तीन पात वाली वहीं रही। दोबारा से मुख्यमंत्री को अनुरोध किया गया तब चीफ इंजीनियर का पद यहां सृजित किया गया और इतने में मेरा यहां से तबादला हो गया और जो गुडगांव में विकास कराने का जुनून था वह अधूरा रह गया। यह बात मैंने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री श्री राव इंद्रजीत सिंह के समक्ष रखी और एक मजबूत अथोरिटी के गठन पर चर्चा की। श्री राव इंद्रजीत ने भी इस बात से सहमति जताई और इसके लिए मैं प्रयास करुंगा। यहीं से ही गुडगांव डेवलपमेंट अथोरिटी के गठन की मांग जोर पकडने लगी। मेरा यहां इस बात का उल्लेख करने का मकसद यही है कि सत्तापक्ष के मुख्य नेताओं सहित अन्य राजनेता , एनजीओ, आरडब्ल्यूए, विशेषज्ञ दूसरे संबंधित सभी पक्ष सहित गुडगांववासी चाहते हैें कि मजबूत जीडीए बने ताकि उनकी सामस्या का समाधान यहीं पर हो जाए लेकिन चंडीगढ में बैठे अधिकारी अपनी शक्तियों को छोडना नहीं चाहते इसलिए एक मजबूत अथोरिटी का गठन एक टेढी खीर बन रहा है।

गुडगांव एक इंटरनेशनल सिटी बन चुका है। यहां पर ढांचागत विकास होना बेहद जरुरी है। इसके लिए एक मजबूत अथोरिटी का गठन होना चाहिए। मैं स्वयं मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल से अनुरोध कर चुका हूं कि गुडगांव में एकाधिकार प्राप्त अथोरिटी बने। मुख्यमंत्री भी चाहते हैं कि यहां एक मजबूत अथोरिटी का गठन हो लेकिन मैंने जब अधिकारियोें से बात की तो उन्होंने यह कहा कि इसमें तो कानूनी अडचन है। जब मैंने उनसे अनुरोध किया कि इसमें कोई अडचन नहीं है और देश में जगह जगह अथेरिटी बनी हुई या बन रही है। साथ ही उन्होंने कहा कि आप हिपा में कार्यरत होने के नाते वहां कानूनविदों एवं अन्य सभी संबंधित पक्षों ( स्टेक होल्डर ) से गहर मंथन करके सरकार को रिपोर्ट भेजें ताकि इस पर जल्दी से निर्णय लिया जा सके। इसके अनुरुप हिपा में बीते वर्ष सात जुलाई को गुडगांव डेवलपमेंट अथोरिटी के गठन को लेकर संगोष्ठी का आयोजन किया गया था जिसमें देश के कानूनविदों, शहरी विकास से जुडे विशेषज्ञों, प्रशासकों, उ़द्यमियों एवं व्यवसायियों , आरडब्ल्यूए, निगम पार्षदों, जिला पार्षदों , विभिन्न राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों इत्यादि ने अपने सुझाव रखे और एक मजबूत अथोरिटी के गठन पर जोर दिया। हिपा द्वारा पूर्व मुख्य सचिव श्री एमजी गुप्ता की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने एक ड्राफट तैयार कर सरकार के पास भेजा। जिसमें मुख्यमंत्री को अथोरिटी का चेयरमैन व अतिरिक्त मुख्य सचिव के रैंक के अधिकारी को वाइस चेयरमैन की नियुक्ति सहित प्लानिंग, लाइसेंस, सीएलयू, पर्यावरण सहित सभी मंजूरी /कार्य गुडगांव में ही हो। इस ड्राफट के अनुसार समस्त गुडगांव जिले का क्षेत्र व केएमपी एक्सप्रेस वे के साथ लगते अधिसूचित भूभाग को गुडगांव डेवलपमेंट अथोरिटी के कार्यक्षेत्र में रखा गया। इसके अनुसार हर समस्या का समधान स्थानीय स्तर पर ही होगा और लोगों को किसी भी काम के लिए चंडीगढ नहीं जाना पडेगा। लेकिन जब सरकार के आला अधिकारियोें को इस बारे में जानकारी हुई तब से ही इन्होंने रोडे अटकाने शुरु कर दिए और मुख्यमंत्री को गुमराह किया कि इसका ड्राफट दोबारा बनाया जाए और इसके लिए एक आईएएस श्री उमाशंकर को ओएसडी भी लगा दिया गया। यघपि इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि हिपा कमेटी द्वारा बना गया ड्राफट एक बडा मजबूत, व्यवहारिक एवं समय की मांग के अनुसार विदेशों एवं देश की लगभग सभी डेवलपमेंट अथोरिटियों अध्ययन आधार पर बाद तैयार किया गया था। श्री उमाशंकर एक कर्मठ, ईमानदार आईएएस अधिकारी हैं उन्होंने बडी मेहनत कर संबंधित पक्षों से चर्चा के बाद एक ड्राफट तैयार किया लेकिन आला अधिकारियों के हस्तक्षेप के कारण उस ड्राफट में दिखावे के तौर पर कुछ शक्तियां इस अथोरिटी को दी गई लेकिन अधिकांश शक्तियां वो शक्तियां ज्यों की त्यों चंडीगढ में उच्चाधिकारियों के पास रख दी हैं जिससे की इस नई अथोरिटी के गठन का कोई औचित्य नहीं बनता क्योंकि हुडा पहले ही है। जब सीएलयू, लाइसेंस, योजना को अंतिम रुप देने का कार्य चंडीगढ में होंगे तो लोगों को कोई राहत नहीं मिलेगी और ना ही विकास कार्यों में तेजी आएगी। गुडगांव डेवलपमेंट अथोरिटी का नाम मेट्रोपोलिटन अथोरिटी रखना न्याय संगत नहीं है क्योंकि इससे ग्रामीण क्षेत्र, केएमपी एक्सप्रेस पर प्रस्तावित विकास में बहुत बडा धक्का लगेगा।

मेरा गुडगांव की डेवलपमेंट से सदा ही लगाव रहा है और इसके लिए वर्षों से हमारी एनजीओ पीपुल्स वाइस के माध्यम से सशक्त एवं व्यवहारिक अथोरिटी के गठन के लिए प्रयासरत रहा हूं। क्योंकि यह मामला अभी विधानसभा के समक्ष कानून बनने के लिए आना है इसलिए मेरा हरियाणा सरकार से, गुडगांव जिला की सभी चारों विधानसभा के विधायकों सहित मेवात, फरीदाबाद, झज्जर, रोहतक, सोनीपत आदि जिलों के उन विधायकों को विधानसभा में अपनी आवाज बुलंद करना चाहिए जिनके विधानसभा क्षेत्रों से केएमपी एक्सप्रेस वे होकर गुजर रहा है। ताकि इस पिछडे हुए क्षेत्र को एक सशक्त एवं व्यवहारिक डेवलपमेंट अथोरिटी बन सके जिससे इस क्षेत्र का अंतर्राष्ट्रीय स्तर का सर्वांगीण विकास हो सके। जिससे हरियाणा प्रांत की संसार के मानचित्र पर एक अलग पहचान बन सके। अगर इसमें किसी तरह की देरी की गई या इसको हल्के में लिया गया तो गुडगांव क्षेत्र ही नहीं सारे प्रांत का दुर्भाग्य होगा।

सुझाव - 1 -गुडगांव मेट्रोपोलीटन डेवलपमेंट अथोरिटी की जगह गुडगांव डेवलपमेंट अथोरिटी नाम देना उचित होगा।
2 - पूरा गुडगांव जिला का क्षेत्र व केएमपी एक्सप्रेस वे का एरिया इसमें शामिल होना चाहिए।
3 - इस अथोरिटी का मुख्यमंत्री चेयरमैन हो तथा अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी की नियुक्ति बतौर वाइस चेयरमैन या सीईओ होनी चाहिए न कि कमिश्नर / प्रिंसीपल सेक्रेटरी के अधिकारी की। क्योंकि अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी को सरकार की सारी शक्तिय दी जा सकती हैं जिससे कि सभी कार्यों की मंजूरी स्थानीय तौर पर हो जाएं । यहां पर कई अथोरिटीयां होने के कारण दूसरे विभागों के अधिकारियों के साथ समन्वय ( कोर्डिनेशन ) करने की बडी समस्या है जो केवल इस स्तर अधिकारी की नियुक्ति से ही ठीक ढंग से हो सकती है।
4 - प्लानिंग, लाइसेंस, सीएलयू, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट आदि सारी शक्तियां अथोरिटी के पास होनी चाहिए ताकि सभी कार्य स्थानीय स्तर पर यहीं हो सकें।
5 - इंवायरमेंट एंड फारेस्ट, फायर क्लीयेंस इत्यादि सभी मंजूरी की सभी शक्तियां अथोरिटी के पास ही हो।
6 - जो ड्राफट सरकार ने प्रकाशित किया है उसके अनुसार अथोरिटी की वित्तिय स्थिति पर प्रश्नचिंह लगा हुआ है। प्रेस की खबरों के अनुसार हुडा की सभी देनदारियां इस अथोरिटी के पास आ जाएगी तो फिर यह कैसे कार्य करेगी और यदि ये देनदारी सरकार भी ले ले तो तब भी विकास कार्य के लिए इसके पास पैसा कहां से आएगा इस बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। हिपा गठित कमेटी द्वारा जो सुझाव बिक्री कर, आबकारी, स्टांप डयूटी सहित अन्य करों का कुछ हिस्सा अथोरिटी को मिले दिए गए वे बडे ही व्यवहारिक हैं और जब तक उनका प्रावधान नहीं किया जाएगा यह अथोरिटी फाइनेंशियली वाइबल नहीं हो पाएगी और इस प्रकार किसी प्रकार का विकास करना संभव न होगा।

ऐसे में गुडगांव को यदि वास्तव में इंटरनेशनल सिटी बनाना है तो यहां पर इंटरनेशनल स्तर का इंफ्रसस्ट्रक्चर देना होगा और जिसके लिए जो एक बगैर सशक्त एवं व्यवहारिक अथोरिटी के बिना संभव नहीं है। मैं आशा करता हूं कि जिस तरह से मुख्यमंत्रीे प्रांत का सर्वांगीण विकास करने के लिए दृढसंकल्प हैं और वे उसी तरह एक मजबूत अथोरिटी के गठन के पक्ष में हैं। ऐसे में सभी मंत्रियों, विधायकों, सांसदों, बुद्धिजीवियों अन्य संगठनों का कर्तव्य है कि वे एक मजबूत , सशक्त एवं व्यवहारिक डेवलपमेंट अथोरिटी के गठन हेतू सरकार को सहयोग दें तथा आवश्यक हो तो दवाब भी बनाए। यदि अब ऐसा नहीं हुआ तो देर हो जाएगी और गुडगांव वासियों को एक और नई दंतविहीन अथोरिटी का बोझ झेलना पडेगा।

लेखक - एसपी गुप्ता, पूर्व आईएएस और हिपा द्वारा बनाई गई जीडीए ड्राफट कमेटी के महासचिव रहे है।

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