गजब है दीवाली....

नरेश सिंह नयाल

कहीं कतारें दीपों की 
झिलमिलाहट रोशनी की
शोर मौज मस्ती का
बधाइयाँ व पटाखों का

कौन कहां फुलझड़ियों जलाता है
हर इंसान अपनी हैसियत से
यहां दीपावली मनाता है

लक्ष्मी की पूजा अर्चना
साल भर भरा रहे
भंडार यह अपना
भाव यही ह्रदयों में होते हैं
अब तो दीपावली की बधाइयां भी
अंगुलियों में मिला करती हैं

सीने से लगा लेना
बड़ों का सिर पर हाथ रखकर
शिद्दत से आशीष देना
पूरी सल्तनत का सुख
सिमटकर उन वृद्ध हाथों का स्पर्श
बनकर मिल जाता था

चलो हम भी दीपावली को
कुछ खास बना देते हैं
जिस घर में प्रकाश लुकाछुप्पी मानो खेल रहा हो
उस घर को आशियाना कर आएं
आओ मिलकर जरा
हम ऐसी दीपावली मना आएं।

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