लाल किला पर ऐतिहासिक कविसम्मेलन आयोजित


अशोक कुमार निर्भय

कविताएं समाज और राजनीति का आईना होती हैं। अपने समय की तमाम स्थितियों की गूंज कविताएं के माध्यम से हमें देखने को मिलती है। कवियों ने अपनी प्रेरणादायी रचनाओं से समाज परिवर्तन की राह में अह्म भूमिका निभाई। उक्त विचार दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं हिन्दी अकादमी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल ने हिन्दी अकादमी द्वारा ऐतिहासिक लाल किला, दिल्ली में आयोजित गणतंत्र दिवस कवि-सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किए। केजरीवाल ने इस आयोजन के हिन्दी अकादमी, दिल्ली की उपाध्यक्ष श्रीमती पुष्पा मैत्रेयी को बधाई भी दी। कवि-सम्मेलन की अघ्यक्षता उर्दू के जाने-मान शायर प्रो. वसीम बरेलवी ने की। यह कार्यक्रम अकादमी की उपाध्यक्ष श्रीमती पुष्पा मैत्रेयी के सान्निध्य में सम्पन्न हुआ।

इस अवसर पर दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कवियों को समकालीन राजनीति पर रचना करने की आवश्यकता पर बल दिया। दिल्ली के कला, संस्कृति एवं भाषा मंत्री श्री कपिल मिश्रा ने कहा कि कविताओं , गीतों एवं नाटकों के माध्यम से समाज की दबी आवाज़ों को अभिव्यक्ति मिलती है। सुप्रतिष्ठित कवि डाॅ. कुमार विश्वास ने कहा कि कविता युग के शासक को आईना दिखाने की सतत प्रक्रिया है। कवि अपने युग की चेतना अपनी कविताओं में लाकर समाज के नवनिर्माण में मुख्य भूमिका निभाता रहा है। उन्होंने सदन में बैठे काव्य-पे्रमियों के आग्रह पर अपनी रचनाएं भी पढ़ीं। इस अवसर पर दिल्ली के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री इमरान हुसैन, श्री संजय सिंह के अलावा दिल्ली सरकार के अधिकारी एवं अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। 

पूरी रात चला कवि-सम्मेलन सुबह सात बजे समाप्त हुआ। संचालन सुप्रसिद्ध कवि श्री शिव ओम अंबर ने बहुत ही खूबी के साथ किया। कवि-सम्मेलन का आरम्भ डाॅ. कमल मुसद्दी की सरस्वती वंदना ‘माँ शारदे अभिज्ञान दे’ से हुआ। सुप्रसिद्ध गीतकार डाॅ. कुंवर बेचैन ने संघर्ष को नये ढंग से अभिव्यक्ति देते हुए अपने काव्य-पाठ में पढ़ा-‘ किसी भी काम को करने की चाहें पहले आती हैं/अगर बच्चे को गोदी लो तो बांहें पहले आती हैं/ हर इक कोशिश का दर्ज़ा कामयाबी से भी ऊँचा है/कि मंज़िल बाद में आती है राहें पहले आती हैं।’ गीतकार किशन सरोज ने अपने एक गीत में पढ़ा-‘ कर दिए, लो, आज गंगा में प्रवाहित/ सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र/ तुम निश्चिंत रहना।’ कवयित्री सुश्री मंजू ने माँ के स्वेटर बुनने और पारिवारिक रिश्तों को जोड़े रखने की अद्भुत प्रस्तुति करते हुए अपने काव्य-पाठ पढ़ा-‘डालती है माँ सलाईयों के फंदे/कभी छोटे बड़े व कभी लच्छेदार/कभी दो फंदों को कम किया/तो कभी चार नये जोड़े/बुनती है माँ रिश्तों को/आजीवन एक स्वेटर की तरह।’ डाॅ. (कर्नल) वी.पी.सिंह ने देश को समर्पित करते हुए अपने काव्य-पाठ में पढ़ा-‘ देश मिट्टी, हवा, पानी से बना है/ देश पुरखों की कहानी से बना है/ खू़न से हस्तक्षर कर दे गगन पर/देश उस पागल जवानी से बना है।’ डाॅ. सरिता शर्मा ने पढ़ा-‘ख़ुदी पे ख़ुदा पे यक़ीन रखता है /ज़हन में सोच में ईमान ओ दिल रखता है/फलक की सारी उड़ाने उसी की होती हैं/ जो अपने पाँव के नीचे ज़मीन रखता है।’ इस अवसर पर आदित्य नारायण मिश्र, अमन अक्षर, अभिराम पाठक, अशोक यादव, कविता तिवारी, कृष्ण कल्पित, क्षितिज उमेन्द्र, चन्दन राय, चिराग जैन, जगदीश सोलंकी, जमुना प्रसाद उपाध्याय, तेजनारायण बेचैन, दिनेश बावरा, प्रकाश पटेरिया, प्रमोद तिवारी, मध्यम सक्सेना, महेन्द्र, महेश्वर तिवारी, राजेन्द्र पंडित, रासबिहारी गौड़, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, शहनाज़ हिन्दुस्तानी, सम्पत सरल, सुनील साहिल, सुमिता केशवा, डाॅ. सुरेन्द्र दूबे एवं सुरेश अवस्थी ने अपनी रचनाओं में समाज, देश और राजनीति में व्याप्त विद्रूपताओं और विसंगतियों को सामने रखा और अपनी प्रेरणादायी रचनाओं से देश के निर्माण में श्रोताओं का आह्वान किया। कार्यक्रम के अंत में सचिव हिन्दी अकादमी हरि सुमन बिष्ट ने सभी अतिथियों और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।

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