भगवान महावीर ---- समय के अमिट हस्ताक्षर


महावीर जयंती पर विशेष प्रस्तुति
डाo एमo सीo जैन
राष्ट्रीय अध्यक्ष
राष्ट्रीय दिगम्बर जैन परिषद्(पंजीकृत)


“जगत्साक्षी मार्ग -प्रकटन परो भानुरिव यो
महावीर स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे “


“जिस प्रकार सूर्य लौकिक मार्गो को प्रकाशित करता है उसी प्रकार मोक्ष मार्ग को प्रकाशित करने वाले जो जगत के ज्ञाता दृष्टा हैं, वे भगवान महावीर मेरे नयन पथ गामी हों ,अर्थात मुझे दर्शन दे |”

प्रकृति का यह नियम शाश्वत नियम है कि काल चक्र की गति से कोई भी बच नहीं पाया है | परिवर्तन प्रत्येक जीव में अथवा पदार्थ में सम्भव है | तीर्थंकरो , संतो, पैगम्बरों और युग पुरुषो की आवश्यकता भी उसी समय अनुभव की जाती है जब संसार में न केवल अधर्म बढता है अपितु अधर्म भी धर्म का आवरण पहन कर जनता को भ्रम बंधन में डाल देता है | प्रकृति का यह नियम कभी भंग नहीं होता है | इसका अनादिकालीन चक्र चलता ही रहता है | वर्तमान कल्प काल में चौबीस तीर्थंकर हुए हैं जिनमे अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हैं | तीर्थंकर महावीर से पूर्व धर्म-दर्शन के तेईस तीर्थंकर और हो चुके हैं जिन्होंने मुक्ति साधना एवं प्रकृति के विभिन्न आयामों के बारे में विचार प्रकट किये हैं और मानव जीवन को सुंदर, सरस, मधुर ,एवं व्यवस्थित बनाने का उपदेश दिया है |

भगवान महावीर का जन्म पाप का शमन करने वाली महान आत्मा के रूप में हुआ था | विश्वशांति और अहिंसा के लिए उन्होंने प्राणिमात्र को पावन सन्देश दिया | आज भगवान महावीर के ही आदर्शो का पालन न करने से चारो ओर अराजकता एवं अशांति का वातावरण है | सदाचार, का पथ ही हमें भगवान महावीर तक ले जाता है | हमें भगवान महावीर को जानना ही नहीं वरन मानना भी है | महावीर को जानने का अर्थ होता है --- महावीरमय हो जाना | बिना महावीरमय हुए महावीर को जाना ही नहीं जा सकता | "अहं" का अंत ही महावीर पद की प्राप्ति है | भगवान महावीर ने अनुभव किया कि यह संसार दु:खो से भरा हुआ है |इस संसार में प्रत्येक प्राणी दु:ख से भयभीत है ओर वह किसी न किसी प्रकार सुख का मार्ग प्राप्त करना चाहता है | इसी को पंडित दौलत राम ने "छह ढाला" में कहा है ------

"जे त्रिभुवन में जीव अनंत , सुख चाहें दु:ख ते भयवंत "

भगवान महावीर धर्म क्षेत्र के वीर थे , युद्ध क्षेत्र के नहीं | युद्ध क्षेत्र में शत्रु संहार किया जाता है पर धर्म क्षेत्र में शत्रुता का | युद्ध में पर को मारा जाता है , धर्म में अपने विकारो को | महावीर की वीरता में अशांति नहीं अनंत शांति है | उनके वियाक्तिव में वैभव की नहीं वीतराग विज्ञान की विराटता है | उनकी जीवनगाथा मात्र इतनी ही है कि वे आरम्भ के तीस वर्षो में वैभव और विलास के बीच जल से भिन्न कमलवत रहे, बीच के बारह वर्षो में जंगल में परम मंगल की साधना में एकांत आत्मराध्नारत रहे और अंतिम तीस वर्षो में प्राणीमात्र के कल्याण के लिए सर्वोदय धर्मतीर्थ का प्रवर्तन , प्रचार , व प्रसार करते रहे |

According to Dr. M B Modi, a well known DRDO Scientist (Retd), “Bhagwan Mahavir synthesized science into religion long before science was born in the West. This blend of science and religion is known as ‘Jainism’ or Jain science of spirituality. Jainism holds great promise for those who seek spirituality in science, in nature and in self, rather than in God and superstition. “Moksha” according to Jainism is not proximity to God or entry to heaven but a state of “Kewalgyana”- a state of omniscience.

सत्य, अहिंसा , ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, अचौर्य, अनेकान्तवाद, स्यादवाद , सहस्तित्व ,अभय , मैत्री , आत्म स्वातंत्र्य एवं पुरुषार्थ जैसे महान आदर्शों के प्रतीक भगवान महावीर हैं | इन महाव्रतो की अखंड साधना से उन्होंने जीवन का मार्ग निर्धारित किया था और भौतिक शरीर के प्रलोभनों से ऊपर उठकर आध्यात्म भावों की शाश्वत विजय प्राप्त की थी | मन, वाणी ओर कर्म की साधना उच्च अनंत जीवन के लिए कितनी दूर तक संभव है , इसका उदा हरण तीर्थंकर भगवान महावीर का जीवन है |

Dr. Modi, has further mentioned that Mahavir in 560 BC and Einstein in 1905 AD, both tried to understand the scientific principle of God. Both believed that the information on the structure of the universe and God exists in the vast infinite space. They independently accessed the same information and discovered the existence of universal consciousness. Mahavir called it “Jivastika”, and Einstein called t “Space- time”, continuum, Peter Higg called the space element as god particle and the religious people call is the God.

युग पुरुष के रूप में जहाँ महावीर समाहत हैं वहीं भूत और वर्तमान के बीच प्रवाहमयी धारा है | महावीर बहाव का नाम है , ठहराव का नहीं | बहाव में निरंतर नित नया कने की सहज उर्जा होती है |महावीर ने “मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान है "-- का सपना देखा था | इंसानी जज्बे को स्थापित करने की उद्दाम लालसा ,मानव मात्र की मुक्ति का अप्रतिम आन्दोलन , शोषण मुक्त अहिंसक समाज का निर्माण , वर्ग भेद से उपजी दीवारों को समाप्त करना महावीर का उद्देश्य था | मानव की मुक्ति और उसे विकसित करने का , पूर्ण इन्सान बनने का, प्रेम और स्नेह का, श्रम के मूल्य का और

विमल द्रष्टी का मार्ग भगवान महावीर ने ही प्रशस्त किया था | वस्तुत; भगवान महावीर समय के कभी न मिटने वाले अमिट हस्ताक्षर हैं |

पत्थर तो पत्थर ही होता है , सोना नहीं होता
अपने लिए जीना , कोई जीना नहीं होता
महावीर का सन्देश है,
“जीओ ओर जीने दो”
अपने लिए जीना , कोई जीना नहीं होता


१९अप्रैल ,२०१६ को केवल भारत में ही नहीं , सम्पूर्ण विश्व में महावीर जयंती मनाई जा रही है. आइए , हम सब मिल कर ,आज महावीर जयंती के दिन , भगवान महावीर के आदर्शो को नमन करें और भविष्य में उनके दिखाए हुए मार्ग का अनुसरण करने का व्रत लें |

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