याद रखो ! यह मैरिट नहीं, मात्र एक धोखा था ,
कल से नहीं, परसों से नहीं , साल दो साल से नहीं ,
यह धोखा तुम करते आये हो दस हज़ार वर्षों से ,
धोखे से छीना उनसे , घर बार, खेत खलियाण ही नहीं ,
उनके लाखों पुरखों से , उनके जीवन यापन के सुख और साधन ,
उनके लाखों , लाखों रोजगार और व्यवसाय ,
उनके सम्मान और सामाजिक समानता के अधिकार ?
और इस निरन्तर छीना झपटी से कर दिया ,
उनको और उनकी लाखों पीढ़ियों को कंगाल , साधन और सत्ता विहीन !
और बना दिया उनको सदियों - २ तक दलित समाज और अपेक्षित वर्ग,
कभी षडयन्त्र से किया वध शम्भूक का ,
तो कभी छल्ल से काटा गला शोंण का !
मगर अब नहीं है तुम्हारी चलने वाली ,
हमारा एक ही विद्धवान और उच्चकोटि वकील ,
तुम्हारे हज़ारों धोखेबाज़, लुटेरों पर बन बैठा भारी ,
क्योंकि झूठ के पाँव नहीं होते , सत्य तो होता ही है स्वंमभू बलवान ,
और अधर्मी होते हैं धोखा देने वाले , छल्ल कपट से हराने वाले ,
गलत नीतियों , कुरीतियों और पाखण्ड से दूसरों को छलने वाले ,
हमारे उस विद्वान , जुझारू और समाज सुधारक ,
युग परिवर्तक मसीहा ने बदल दिया तुम्हारा सब धोखे और पाखण्ड का खेल ,
और लिख दिया डॉ.अम्बेडकर ने, सत्य , निष्ठा, समानता
और सिद्धांतों पर आधारित एक अनूठा संविधान !
क्योंकि वह बहुत अच्छी तरह समझ चुका था - आर्थिक आज़ादी के बिना ,
बिलकुल अर्थविहीन ही है , राजनैतिक और समाजिक आज़ादी !
और अब हज़ारों वर्षों से दलित और शोषित
वर्ग के बच्चे ही पढ़लिख कर बदलेंगे अपनी तकदीर ,
और उनकी तदबीरों से बदलेगी पूरे भारत की तस्वीर ,
समझ सको तो समझ लो - वक़्त है अब भी ,
सम्भल सको सम्भल जाओ , वक़्त है अब भी ,
छोड़ दो इन साधन विहीन और संरक्षण विहीन -
दलित वर्ग को , और छोड़ दो इन पर करने शोषण , अत्याचार और अन्याय !
मत भूलो ! यह भी इसी भारत माता के बच्चे हैं ,
और इनको भी बढ़ना है आगे ही आगे , और बने रहना है -
निरन्तर उन्नति, विकास और परिवर्तन की डगर पर अग्रसर !
दस हजार से ज्यादा वर्षो से पूरे समाज को उलझाए रखा ,
पाखण्डों में, आडम्बरों में इन तथा कथित ऊँची जाति वालों ने ,
फंसाए रखा भोली भाली जनता को झूठे अन्ध विश्वासों में ,
और करते रहे करोड़ों गरीबों और मजलूमों का शोषण ,
बना डाला उनको अस्पृश्यता और छुआछूत के शिकार ,
झूठे तर्कों से , अविज्ञानिक सोच और विचारधारा से ,
और उस वक़्त के सैंकड़ों राजे रजवाड़ों से मिलकर की साजिशों से ,
और कर दिए थे बंद उनके लिए सब दरवाजे -
शिक्षा के , उन्नति के , विकास के , विछाके कांटे उनकी राहों में ,
और किये उनके साथ अमानवीय और पशुता जैसे व्यवहार !
ताकि वह सब बने रहेँ हमेशा के लिए इनके ग़ुलाम और खिदमतगार ,
डॉ.अम्बेडकर ने जला डाली थी तुम्हारी वोह छडयन्त्र रचित पुस्तिका - मनुसमृति !
और अब जब वह आज़ादी के साठ सत्तर वर्षों में ,
लगे जब थोड़ा चैन की सांसें लेने , पढ़ने लिखने -
तो तब यह लगे मचाने हल्ला गुल्ला व चीक चिहाड़ा ,
अगर हिम्मत है तो आप भी बन कर दिखाओ, ज्यादा नहीं बस पांच सौ वर्ष -
उन जैसे शुद्र , दलित, शोषित , अपेक्षित और अछूत ,
और भोगने दो पुराने दलितों को थोड़ा ठंग से , सलीके से ,
सत्ता सुख , खुशहाली , समृद्धि और अपार शक्तियों से अर्जित -
समाजिक , आर्थिक और राजनैतिक सुविधायों को ,
और फिर देखना वह कैसे निखारते हैं यह अपनी बुद्धि , और कला कौशल -
और सब क्षेत्रों में पछाड़ते हैं , इन तथाकथित स्वर्णो को ,
और फिर तब देखना कैसे तुम्हारी मैरिट को लगता है -
जंग और कैसे चाटती है दीमक तुम्हारी बुद्धि और किस्मत को !
और याद रखना ! जो देश - प्रदेश अपने नागरिकों के लिए नहीं बनाते,
समानता के अधिकार, नहीं देते उनको बढ़ने , फलने फूलने के बराबर अवसर ,
और यहाँ लड़कियों और औरतों पर होते रहते हैं आये दिन शोषण व अत्याचार ,
माना जाता है सब जगह उनको दूसरे दर्जे के नागरिक ,
वही देश पिछड़ जाते हैं सम्पूर्ण तौर पे अन्य प्रगतिशील और विकासशील देशों की श्रेणी में ,
और उनको बनना पड़ जाता है प्रगतिशील व विकासशील देशों के पिछलगु -
विकास में , प्रगति में , विज्ञानं में , विश्व मार्गदर्शन में , और ना जाने
कितने ही प्रतिस्पर्धा की राहों में, पगडंडियों में और शेष दुनियाँ की निगाहों में !
रचना : आर.डी. भारद्वाज "नूरपुरी "