संयोग या इत्तेफ़ाक !

आर.डी. भारद्वाज "नूरपुरी"

उस दिन शुक्रवार था, दफ्तरों में काम करने वालों के लिए हफ़्ते का आख़री दिन ! अनमोल के लिए भी यह दिन कुच्छ खास ही था | अनमोल, उम्र लगभग 27 वर्ष, और वह चंडीगढ़ में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था, यह उसकी पहली नौकरी थी जो उसे एमबीए करने के बाद मिली थी और वह जालंधर जिले के एक छोटे से गाँव से चंडीगढ़ इसी नौकरी के लिए आया था | शाम के चार बज चुके थे और वह अपने दफ़्तर के बकाया काम पूरी लगन से पूरा करने में लगा हुआ, ताकि वह छुट्टी होने तक अपने सभी कार्य मुकम्मल कर सके | ऐसे ही अपने काम में बिजी रहते हुए उसे कब छह बज गए, उसे पता ही नहीं चला ! बीच में एकबार उसके एक दोस्त का फ़ोन भी आया कि आज शाम को वह छुट्टी के बाद उसके घर जायेगा, अनमोल ने भी उसे हाँ कर दी ! छुट्टी होते ही जब वह पार्किंग एरिया की तरफ़ जा रहा था, अचानक उसके फ़ोन की फिर से घंटी बजी ! मोबाइल देखा तो पता चला की यह तो उसकी माँ का फ़ोन है | "हाँ माँ ! नमस्ते ! क्या हाल है ? घर में सब कुच्छल मंगल है ना ?" दूसरी तरफ़ से माँ ने उत्तर दिया, हाँ ! सब ठीक है, तुम्हारा क्या हाल है ?" "मैं भी ठीक हूँ ! दफ़्तर से छुट्टी हो गई है ना ?" "हाँ ! माँ ! छुट्टी हो गई , मैं अभी - २ दफ़्तर से निकला हूँ , गाड़ी निकालकर घर जायूँगा और फिर मेरा एक दोस्त आज शाम मेरे घर आ रहा है !" दूसरी ओर से माँ ने जवाब दिया , "देखो बेटा ! अपने दोस्तों के साथ तो तुम अक्सर रहते ही हो, आज तुम यहाँ आ जायो ! बहुत दिन हो गए हैं, तुम्हें देखे हुए !" अनमोल ने माँ की बात काटते हुए बोला ,"बहुत दिन कहाँ हो गए हैं , अभी पिछले हफ़्ते तो मैं गाँव आया था ! अगले सप्ताह आ जायूँगा !" लेकिन माँ अर्चना भी कहाँ उसकी सुनने वाली थी, उसने फिर थोड़ा ज़ोर से बोला ,"अब चंडीगढ़ जाकर तुम्हें यह भी याद नहीं रहता कि तूं यहाँ कब आया था, पूरे पन्द्राह दिन हो गए हैं, पिछले सप्ताह भी तूने कहा था कि अगले हफ़्ते आ जायूँगा !" अनमोल को फ़िर याद आ गया कि पिछले हफ़्ते तो उसने अपने दोस्तों के साथ पार्टी की थी, लेकिन फ़िर भी उसने माँ को समझाने की कोशिश की , "अच्छा माँ ! मुझे याद आ गया , लेकिन इस सप्ताह मैंने अपने एक दोस्त से वादा किया है, यहाँ रहने का , अगले हफ़्ते मैं आपके पास अवश्य पहुँच जायूँगा !" लेकिन माँ तो माँ ही होती है, और वह फिर थोड़ा रौब से बोली, "देखो बेटा ! अपने दोस्तों के साथ तुम पूरा सप्ताह चंडीगढ़ में ही रहते हो, मैंने तुझे कभी नहीं रोका | देखो कुच्छ जरुरी काम है, अब मैं तुम्हारी और बातें नहीं सुनुँगी !" बस इतना कहते ही माँ ने फ़ोन काट दिया और इधर अनमोल भी सोच में पड़ गया कि वह अपने दोस्त की बात सुने या फ़िर अपनी माँ की ? ख़ैर, घर जाते समय वह सोचता ही रहा की क्या किया जाये ! ऑफिस से अभी घर पहुँचा ही था, कि उसके दोस्त का फिर से फ़ोन आ गया ,"यार अनमोल ! हमारे प्रोग्राम में थोड़ी तबदीली है, मुझे अभी - २ एक और दोस्त का फ़ोन आया है, उसने मुझे रोज़-गार्डन में बुलाया है , ऐसे करते हैं , मैं तुम्हारे पास आज नहीं, कल आयूँगा! ओके !" उसकी बात सुनकर अनमोल को थोड़ा गुस्सा आया और वह उसे ख़री खोटी सुनाने लग गया , "साले ! आज मुझे अपने गाँव जाना था, तेरी वजह से मैंने अपनी माँ को नाराज़ कर दिया और तूँ अब बोल रहा है कि मैं कल आयूँगा ! "साले यह बता ! रोज़-गार्डन तुझे किसी दोस्त ने बुलाया है या फ़िर तेरी छमकछलो ने?" दूसरी तरफ़ उसके दोस्त विनोद ने उसकी बात का जवाब दिए बिना, बस एक नटखट सी हंसी के बाद फ़ोन काट दिया |

दोस्त द्वारा बात पलटने से उसे अपनी माँ की नाराज़गी का एहसास हो गया | फिर उसने जल्दी से अपना समान पैक किया, और गाड़ी उठाकर जालंधर की और चल पड़ा ! उसे यह भी ख़्याल आया की अगर वह आज शाम अपने गाँव नहीं गया तो उसके पिताश्री से रात को डांट पड़ जाती ! अनमोल अभी कुराली ही पहुँचा था, कि उसे दूर सड़क के किनारे खड़ी एक लड़की दिखाई दी, वह घड़ी - २ अपनी घड़ी देख रही थी और काफ़ी परेशान दिखाई दे रही थी ! उसे देखकर अनमोल का भी ध्यान उसकी तरफ़ चला गया, और फ़िर लड़की ने भी उसे रुकने के लिए इशारा कर दिया | उसके पास जाकर, गाड़ी का शीशा नीचे सरका दिया दिया, लड़की ने आगे आकर स्वाल किया , "क्या आप जालंधर की और जा रहे हैं ?" अनमोल के हाँ करने पर लड़की ने दूसरा सवाल किया ,"क्या आप मुझे लिफ्ट दे सकते हैं , मैंने भी उधर ही जाना है ?" अनमोल को लगा कि यह लड़की वाक्य ही काफ़ी परेशान है और उसने उसे गाड़ी में बैठने को इशारा किया | फ़िर लड़की झट से गाड़ी में सवार हो गई और उसने बैठकर बड़ी राहत अनुभव की ! थोड़ी देर चलने के बाद अनमोल ने उसे सवाल किया, "आपने कहाँ जाना है?" लड़की ने उत्तर दिया , "जाना तो मैंने कपूरथला है, मैं यहाँ पिछले आधे घण्टे से खड़ी थी, उधर जाने वाली दो बसें आई तो थी, लेकिन पूरी भरी हुई थी और इतनी दूर खड़े - २ सफ़र करना बड़ा मुश्किल है, इसलिए मैंने आपको तकलीफ़ दी !" "नहीं, कोई तकलीफ़ नहीं , मैं भी जालंधर ही जा रहा हूँ , वहाँ तक तो आप जा ही सकते हो ! नो प्रॉब्लम ! आपका नाम ?" लड़की ने संक्षिप्त मैं जवाब दिया ,"जागृति !" गाड़ी अपनी रफ़्तार से मंज़िल की ओर बढ़ती जा रही थी , थोड़ी देर दोनों खामोश रहे, फ़िर अनमोल ने लड़की से सवाल किया, "क्या चंडीगढ़ आप घूमने फिरने आई थी या फ़िर यहाँ कोई जॉब करती हो ?" "मैं चंडीगढ़ में जॉब करती हूँ, और कुराली रहती हूँ !" "गुड ! वैसे मैं भी चंडीगढ़ में ही जॉब करता हूँ !" जागृति ने अपना सिर हिलाते हुए "हूँ " में उत्तर दिया और अनमोल समझ गया कि लड़की ज़्यादा बातचीत करने में दिलचस्पी नहीं ले रही | कुच्छ देर वह भी ऐसे ही खामोश रहकर गाड़ी चलाता रहा, बीच - २ कभी - २ वह थोड़ा गर्दन घुमाकर उसे देखता और फ़िर सीधा देखना लग जाता | जागृति ने भी उसकी यह दिलचस्पी अनुभव की और उसने अनमोल को समझाने का यतन किया ,"गाड़ी चलाते समय आदमी का ध्यान केवल सड़क पर ही रहना चाहिए !" अब अनमोल से भी नहीं रहा गया और उसने अपना विचार पेश किया , "मेरा मानना है की जब भी कोई किसी से मिलता है तो वह केवल इत्तेफाक़ नहीं होता, दूसरी बात, जब साथ - २ सफ़र करना हो तो थोड़ी बहुत गपशप करने में क्या जाता है ?" "बात तो आपकी सही है, मगर .......!" अनमोल ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए अपनी प्रतिकिर्या दी, "अगर मग़र कुच्छ नहीं, यह देखो अब लुधियाना भी आ गया और हमारी ठंग से जान पहचान भी नहीं हो पाई, अच्छा वह एक छोटा सा रेस्टोरेंट आ रहा है, चलो ! चाय कॉफ़ी पीते हैं?" जागृति ने थोड़ा ज़ोर से जवाब दिया, "देखो ! मुझे चाय कॉफ़ी कुच्छ नहीं पीनी , मुझे बस जल्दी घर पहुँचना है !" 

उसके मना करने के बावजूद भी अनमोल ने वहाँ पहुँचकर गाड़ी रोक ली और लड़की की भावनाओं का भी ख़्याल करते हुए, एक दुकान से चॉकलेट लेकर बस दो मिन्टो मैं ही वापिस गाड़ी चलाने लग गया , फिर उसने एक चॉकलेट जागृति की तरफ़ बढ़ाते हुए बोला ,"यह आपके लिए , और कुच्छ नहीं तो आप मेरे साथ सफ़र में बोर तो नहीं होगी !" जागृति ने चॉकलेट पकड़ लिया और धीरे - २ खाने लगी ! बोनट पर रखी दूसरी चॉकलेट की तरफ़ इशारा करते हुए उसने स्वाल किया ,"आप नहीं खाएंगे ?" अनमोल ने जवाब में केवल उसकी ओर मुस्कराके देखा और फिर गाड़ी चलाने लग गया | "तो फ़िर दूसरा चॉकलेट किसके लिए ? गर्ल फ्रेंड?" अनमोल ने जवाब दिया ,"नो गर्लफ्रेंड ! दरअसल, घर में मेरी एक छोटी बहन है, मैं जब भी घर जाता हूँ, तो उसके लिए कुच्छ न कुच्छ लेकर जाता हूँ, नहीं तो वह नाराज़ हो जाती है !" "ओह आई सी ! तो यह बात है ! कितनी बड़ी है वह, क्या करती है ?" "मेरे से चार वर्ष छोटी है और कॉलेज में पढ़ती है !" "छोटी बहन का आपसे किसी चीज़ की इच्छा रखना या फिर मांगना , कोई ग़लत नहीं है , वह तो उसका अधिकार है !" इतना कहते हुए जागृति ने अपने चॉकलेट में से थोड़ा तोड़कर अनमोल को देते हुए कहा , "यह लो ! आप भी खायो ! ऐसे आप भी अच्छे नहीं लगते !" अनमोल ने महसूस किया कि अब जागृति बातचीत करने में दिलचस्पी ले रही है, तो उसने पूछा, "आपने उस रेस्टोरेंट में चाय पीने से मना क्यों किया था ?" "दरअसल घर पर मेरे मामा आये हुए हैं, और वह मेरा इंतज़ार कर रहे हैं, शायद मुझे मिलकर वह वापिस अपने घर चले जाएं, इसलिए मेरी मम्मी ने कहा था कि मैं जल्दी घर पहुँच जायूँ , और कुच्छ नहीं था !" "चलो ! आप कहते हो तो मान लेते हैं, अच्छा जालंधर में आपको मैं कहाँ छोडूं , पीएपी चौक या फ़िर बस अड्डे ?" "पीएपी चौक में ही छोड़ देना, मुझे वहीं से कपूरथला के लिए बस मिल जाएगी !" थोड़ी ही देर बाद वह पीएपी चौक पहुँच गए और इसे पहले कि अनमोल उसका फ़ोन नंबर पूछता, जागृति झटसे गाड़ी से उत्तरकर उसे हलकी सी मुस्कान के साथ केवल बाय - २ करते हुए दूसरी दिशा की ओर चल पड़ी |

अनमोल जैसे ही अपने घर पहुँचा, उसकी गाड़ी की आवाज़ सुनकर उसकी छोटी बहन जिज्ञासा भागती हुई आई और कसकर भाई के गले लग गई | इतने में उसकी माँ भी बाहर आ गई और उसने भी अपने बेटे को गले लगाकर उसे खूब लाड प्यार किया | अपनों का प्यार क्या होता है, यह बस ऐसे लम्हें भी हमें अच्छी तरह याद दिलाते रहते हैं, बस हम लोग ही कभी -२ अपनों को मन से बिसार देते है | फ़िर बहन जल्दी से उसके लिए शरबत का गिलास लेकर आई | थोड़ी देर बाद अनमोल के पिताश्री भी अपनी ड्यूटी से वापिस घर आ गए | उन्होंने भी बेटे के सर पर प्यार से हाथ फ़ेरा और उसका हालचाल जाना | रात को खाने के बाद उसके पिताश्री ने अनमोल को सूचना देते हुए बताया , "देखो बेटा ! तुझे पता ही है कि पिछले 5/6 महीने से तेरे रिश्ते की बातें चल रही, कभी कहीं से रिश्ता आता है और कभी हम भी अच्छा रिश्ता ढूँढ़ते रहते है ! तो कट दी स्टोरी शार्ट, कॉलेज के दिनों से मेरा एक दोस्त था, एक दिन अचानक मेरे दफ़्तर में उसे मुलाकात हुई तो उसने अपनी भान्जी का जिकर किया, मुझे और तेरी मम्मी को तो अच्छा लगा, बस अब हम उस लड़की को देखने जाना है! मुझे तो लगता है कि वह लड़की तुम्हारे लिए ठीक रहेगी !" अनमोल ने सवाल किया , "लड़की क्या करती है , कितना पढ़ी लिखी है, उसका परिवार कैसा है ?" "चिन्ता मत कर ! हमने सब पता कर लिया है, लड़की का मामा मेरा पुराना दोस्त है और मुझे यकीन है कि वह मेरे साथ ऐसे रिश्ते की बात करता है तो सही - २ ही बताएगा ! लड़की एमए पास है और चंडीगढ़ में किसी कम्पनी में नौकरी कर रही है | उसके डैडी का अपना कारोबार है, एक छोटा लड़का है, छोटा परिवार - सुखी परिवार !" अनमोल ने अपना अगला सवाल किया , "डैड ! वह कहाँ के रहने वाले हैं ?" "कपूरथला ! बाकी बातें तूँ वहीँ जाकर पूछ लेना, हमने तुझे कौन सा कोई सवाल पूछ्ने से मना किया है ? बस हम कल ग्यारा वजे उनके घर जा रहे हैं ! तुम सभी वक़्त पर तैयार हो जाना ! ओके !" सुनकर अनमोल तो कुच्छ सोच में पड़ गया लेकिन उसकी माँ और बहन तो बहुत खुश हुई | जिज्ञासा ने तो मारे ख़ुशी के खूब ताली बजाकर अपने भाई की तरफ़ देखा और अपनी प्रतिकिर्या देते हुए बोली , "भैया ! गेट रेडी ! कल हम भाभी फाइनल करने जाएँगे ! "

अगले दिन ग्यारा वजे प्रमोद, अर्चना, जिज्ञासा व अनमोल सभी वक़्त पर तैयार होकर कपूरथला के लिए चल पड़े ! रास्ते में अनमोल तो ज़्यादा कुच्छ नहीं बोला, लेकिन उसकी बहन जिज्ञासा लड़की के परिवार के बारे में खूब जानकारी हासिल कर रही थी, लड़की ने किस विष्य में एमए किया है ? किस कंपनी में नौकरी करती है ? चंडीगढ़ में वह किसके साथ रहती है, वगैरह - २ ! उसके पिता ने बस संक्षेप में इतना ही उत्तर दिया कि वह एमए अर्थशास्त्र में करके नौकरी में आ गई थी, दूसरी बात - क्योंकि लड़की का मामा उसका पुराना दोस्त है, उसने लड़की के बारे में ज़्यादा पूछताश करनी मुनासिब नहीं समझा ! बस मुझे इतना ही पता है वह लोग मुझे जो भी बताएंगे, सही - २ ही बताएंगे, कोई ग़लत नहीं बताएंगे, उनको भी पता है कि बनने वाली रिश्तेदारी में ग़लत बातें बताने से ज़िन्दगी कभी अच्छी नहीं रहती ! समाजिक कामों में भी कुच्छ तो ईमानदारी बरतनी ही चाहिए, नहीं तो इन्सान का इन्सानियत से विश्वास ही उठ जायेगा ! ऐसे ही बातें करते - २ उनको पता भी नहीं चला कि कब वह कपूरथला पहुँच गए | कपूरथला में प्रीत विहार का पता करके वह निश्चित घर पहुँच गए | दरवाजे की घंटी सुनकर प्रमोद के दोस्त - जय प्रकाश ने ही दरवाजा खोला और उसने प्रमोद को जफ़्फ़ी डालकर उसका स्वागत किया - "आपका हार्दिक स्वागत है, यार ! मुझे नहीं पता था कि हम लोग इतने सालों बाद जब मिलेंगे तो ऐसी स्थिति में मिलेंगे !" फ़िर उसने अपने जीजा - चन्द्रपाल और बहन जानकी और उनके इकलौते बेटे गगन दीप से इंट्रोडक्शन करवाई ! चन्द्रपाल का खुला घर, घर की बनावट-सजावट देखकर उनका मन प्रसन्न हो गया ! शुरुआत में दोनों परिवारों ने आपस में ही जान पहचान की, बच्चों के बारे में पूछा, उनकी दिलचस्पी का केंद्रबिंदु - अनमोल के बारे में जानकारी लेने लग गए, नौकरी वगैरह ! चंद्रपाल ने नए बनते रिश्ते के बारे अपनी राय देते हुए विचार व्यक्त किया कि उसका परिवार तो जातपात या गोत्रों इतियादी की बजाये इस बात पर ज़्यादा ध्यान देते हैं कि लड़के में गृहस्ती सँभालने और चलाने की काबिलयत हो , यह गुण ज़्यादा महत्वपूर्ण है | जमाना बदल रहा है और जो इन्सान बदलते वक़्त के साथ अपने विचारों में भी नवीनता लाता रहे, वही इन्सान और परिवार ज़िन्दगी में ज़्यादा कामयाब हो पाएगा ! उसकी राय से इत्तेफाक़ रखते हुए प्रमोद ने भी हामी भरी कि हम लोग भी ऐसी ही विचारधारा के पैरोकार और समर्थिक हैं |

बातों - २ में उनको पता भी नहीं चला कि काफ़ी समय हो गया है, और फिर चंद्रपाल ने अपनी पत्नी जानकी से कहा कि बेटी को तो बुलायो, फ़िर चाय पिएंगे | उसका इतना कहना ही था कि उनकी बेटी हाथों में चाय की ट्रे लेकर आ गई | अपनी बेटी की इंट्रोडक्शन करवाते हुए उसकी मम्मी ने कहा, " यह हैं हमारी बेटी - जागृति ! इसने एमए अर्थशास्त्र में किया है और पिछले ही वर्ष इसकी नौकरी चंडीगढ़ में लगी है !" जागृति नाम सुनकर और उसे देखकर अनमोल तो सचमुच दंग रह गया, क्योंकि यह तो वही लड़की, कद पाँच फुट पाँच इंच, रंग गोरा, मोटी - २ बंटे जैसी आँखें, लेकिन उसने किसी को ज़ाहिर नहीं होने दिया कि यह वही लड़की है जिसने उसकी गाड़ी में कल कुराली से जालंधर पीएपी चौक तक लिफ्ट ली थी | उधर जागृति ने भी अनमोल को देखते ही पहचान लिया, मग़र उसने भी किसी को कुच्छ ज़ाहिर नहीं होने दिया | दोनों घरों के बड़े लोग तो दोनों परिवारों के कामकाज़ के बारे में बातें करते रहे ! फ़िर थोड़ी देर तक वहाँ ख़ामोशी छाई रही | इसी ख़ामोशी को तोड़ते हुए प्रमोद ने कहा, चलो हम लोग आपका घर देखते हैं और लड़का लड़की को भी आपस में बातचीत के लिए थोड़ा समय देना चाहिए | चंद्रपाल ने उनकी हाँ में "हाँ" मिलाते हुए उत्तर दिया , "बिलकुल सही बात है ! चलो बेटा जागृति ! आप अनमोल को अपना कमरा दिखा दो और हमलोग इनको अपने घर की सैर कराते हैं |"

माँ बाप से इशारे पाते हुए जागृति ने अनमोल को अपने कमरे की और चलने का आग्रह किया जोकि ऊपर पहली मन्जिल पर था | वहाँ पहुंचकर अनमोल जागृति का कमरा ध्यान से देखने लग गया, कमरे में उसकी सभी किताबें ठंग से मेज़ पर सजी हुई थी, कोई वास्तु फालतू में इधर उधर पड़ी नहीं दिखाई दी, जैसे कि उसके अपने कमरे में चंडीगढ़ में अक्सर होता है | थोड़ी देर के लिए तो दोनों चोरी - २, चुपके - २ एक दूसरे को निहारते रहे थे और फ़िर अनमोल ने ही पहल की, "गुड ! इंटरेस्टिंग ! आपका कमरा को काफ़ी साफ़ सुथरा है, लगता है आपको सफ़ाई काफ़ी पसंद है !" जागृति ने भी उतर दिया , "हाँ ! घर की साफ़ सफ़ाई हुई हो और सब चीज़ें अपने - २ सही ठिकाने पर रखी हुई हों, तो ढूंढने में कोई दिक्कत नहीं आती !" "बात तो आपकी सही है , मग़र इस सब के लिए आपके पास समय भी तो होना चाहिए ! चलो छोड़ो ! आप यह बताओ कि क्या आपको मालूम था कि कल हमलोग यहाँ आने वाले हैं ?" " पूरी तरह तो नहीं, लेकिन हाँ ! मम्मी ने मुझे थोड़ा हिंट दे दिया था की आज कोई आने वाला है और वह लोग मेरे मामा जी के चिर-परिचित ही हैं !" "तो इसीलिए कल आपने मेरे साथ उस रेस्टोरेंट में कॉफी पीने से मना कर दिया था ?" "आप अभी तक कॉफ़ी पर ही अटके हुए हैं, आपको अपने घर की लौंग इलायची वाली चाय पिला तो दी !" अनमोल को उसका यह डायलॉग अच्छा लगा और दोनों ठहाके मरकर हँसने लग गए ! अनमोल ने उसकी हाज़िर-जवाबी पर अपनी प्रतिकिर्या देते हुए प्रतिउत्तर दिया, "कॉफ़ी स्मार्ट हो ! तुम्हें एक आश्चर्य वाली बात बातायूं ! मैं कल अपने गाँव अभी आना नहीं चाहता था, मुझे तो अगले सप्ताह आना था, लेकिन मम्मी ने जब मुझे कल फ़ोन किया, तो मैंने अगले सप्ताह आने के लिए बोल दिया था ! मुझे यह बात हरग़िज़ नहीं पता थी कि हम लोग आज यहाँ आने वाले हैं और न ही मेरी मम्मी ने इसका कोई हिंट दिया था !" "रियली ! यह तो सचमुच बड़ा दिलचस्प इत्तेफ़ाक हो गया ! चलो जो कुच्छ हुआ, अच्छा ही हुआ है ! बाकी रही बात स्मार्ट होने की - तो अनमोल जी ! बदलते वक़्त के साथ लड़कियों को भी स्मार्ट होना ही चाहिए, नहीं तो वह ज़िन्दगी की दौड़ में पीछे रह जाएँगी ! और अब ज़रा यह भी बता दो कि आज हमारे परिवार के साथ मुलाकात के बारे में आपकी क्या राय है ? आपको मैं बता देती हूँ कि हमारी राय जानने की नीचे सभी को बड़ी उत्सुकता है !" जागृति का इतना कहना ही था कि दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी | सामने देखा, तो अनमोल की बहन जिज्ञासा सामने खड़ी थी और उसने बताया कि नीचे सभी लोग आपको बुला रहे है ! सुनकर जागृति ने एक मिंट के लिए अनमोल की तरफ़ देखा कि शायद वह उसे कोई हिन्ट देगा, लेकिन शायद अनमोल उसे अभी और बातें करना चाहता था, फिर जिज्ञासा के सामने वह भी थोड़ा संकोच कर गया और जागृति ने भी जब उसे नीचे चलने का इशारा कर दिया तो वह तीनो धीरे - २ सीढ़ियों की और बढ़ने लगे| इतने में जिज्ञासा ने चुपके से जागृति का हाथ पकड़ लिया और धीरे से पूछा, "हैल्लो मैडम ! मैं आपसे ज्यादा कुच्छ नहीं पूछूँगी ! बस मुझे एक छोटी सी बात बता दो ?" जागृति ने भी उस्सुक्ता पूछा, "क्या ?" जिज्ञासा ने उसका हाथ दबाते हुए पूछा, "क्या मैं आपको भाभी कह सकता हूँ ?" सुनकर जागृति अभी भी अपने मन की बात खुलकर नहीं बता पाई, इसका बस उसने यही छोटा सा ही उत्तर दिया, "इसका उत्तर तो तुम्हारे भाई ही दे सकते हैं !" मनमाफ़िक जवाब ना सुनकर जिज्ञासा को अच्छा नहीं लगा, और वह अपनी झल्लाहट व्यक्त करते हुए बोली, "उफ़ ! आप दोनों को तो बस किसी सस्पेंस थ्रिलर फ़िल्म में काम करना चाहिए, ताकि आख़िर तक किसी को भनक भी न लगे कि असली क़ातिल कौन है ?"

तो ऐसे ही धीरे - २ पौढ़ियाँ उत्तरकर वह नीचे ड्राइंग रूम में आ गए और वहाँ पर मौजूद सभी लोग उनको देखकर अपने - २ नज़रिये से अन्दाज़ा लगा रहे थे | थोड़ी देर तक ऐसे ही बैठे रहने के बाद जागृति के मामे जय प्रकाश ने ही सवाल किया, "बई ! आप सभी गुमसुम क्यों बैठे हो, आपकी मीटिंग कैसी रही, कुच्छ हमें भी बताओ ?" जाग्रति की माँ ने अपने भाई को थोड़ा सबर रखने के लिए इशारा किया और धीरे से जागृति का हाथ पकड़कर उसे रसोई में ले गई | इधर अनमोल के माता पिता ने भी अनमोल को इशारे से एक तरफ़ बुलाया और चुपके - २ उसके साथ गुफ़्तगू करने लग गए | फ़िर, जानकी अनमोल से धीरे से बोली , "हाँ ! बेटा अनमोल ! क्या तुम्हें लड़की पसंद है ?" "उत्तर में अनमोल ने बस इतना ही कहा, "लड़की बड़ी स्मार्ट है !" सुनकर उसके पिताश्री बोले , "अब बेटा ! लगे हाथ यह भी बता दो, क्या तुम उस स्मार्ट लड़की के साथ रिश्ता जोड़ने के लिए राजी हो?" अनमोल ने फिर संक्षेप में ही उत्तर दिया ,"हाँ ! बाकी आप देख लो !" उसके मुँह से यह चार लफ़ज़ सुनकर सभी के चेहरे ख़ुशी से ख़िल गए और फ़िर वह सभी दूसरी पार्टी की तरफ़ देखने लग गए ! प्रमोद ने इशारे से अपने मित्र जय प्रकाश को बुलाया और उसे बता दिया कि हमें यह रिश्ता मन्जूर है और आप जागृति के माँ बाप से बात करके हमें बताओ |" इतनी देर में जाग्रति की मम्मी भी रसोई से बाहर आ गई और उसने अपने पति के कानों में चुपके से कुच्छ कहा, जिससे सुनकर चंद्रपाल के चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान की लहर फ़ैल गई | उसने भी जागृति के मामा को ख़ुशख़बरी सुनाई कि बच्चे एक दूजे को पसंद करते है | अब तो बस जय प्रकाश ने अपने यार प्रमोद को गले लगाते हुए फ़ैसला सुना दिया, "चलो बई ! सबका मुँह मीठा करवाओ, यह रिश्ता दोनों परिवारों को मंजूर है |" इतना सुनते ही सभी होने वाले समधी एक दूजे के गले मिले और फ़िर बच्चों की मम्मियाँ भी ख़ुशी से झूम उठी | इतने में जय प्रकाश ने अपनी भान्जी को आवाज़ लगाई , "बेटा जागृति ! मिठाई लेकर आओ, रिश्ता पक्का हो गया है, सबका मुँह मीठा करवाओ !"

रिश्ता पक्का होने की ख़ुशी में सभी एक दूसरे को जब मिठाई ख़िला रहे थे तो अनमोल की माँ ने अपने पति से कहा, "चलो जी ! आप अब अपनी जेब थोड़ी ढीली करो , लड़की को शगुन देना है!?" प्रमोद ने शगुन का लिफ़ाफ़ा जानकी के हाथ में दिया और उसने जागृति को अपने पास बुलाकर, पहले उसे गले लगाया और फ़िर उसके हाथ में शगुन का लिफ़ाफ़ा पकड़ा दिया और सबको सुनाकर बोली, "देखो जी ! आप सभी ध्यान से सुन लो ! आज से जागृति अब हमारी बेटी हो गई है !" उनकी बात सुनकर जागृति के मामा ने अपनी प्रतिकिर्या दी, "अरे ! यह कैसे हो सकता है ? शगुन तो पहले लड़की वाले देते हैं !" उसके जवाब में प्रमोद ने उत्तर दिया, "यार ! हमने कब मना किया है, आप अब हमारे बेटे को शगुन दे दो और अपना बना लो !" यह बात सुनकर सभी ठहाके मारमार कर हंसने लग गए और घर में ढेर सारी खुशियाँ गूँजने लग गई | इतने में जानकी ने भी शगुन का लिफ़ाफ़ा अनमोल के हाथों में दिया और बड़े प्यार दुलार और भावनात्मिक सलीके से उसका माथा चूम लिया ! थोड़ी ही दूरी पर खड़े अनमोल और जागृति उन सबसे चोरी - २ एक दूसरे को निहारते हुए मंद - २ मुस्करा रहे थे, क्योंकि इस रिश्ते से केवल यह दो बच्चे ही नहीं, दो परिवारों ने भी एक नए रिश्ते में अपने आप को बांधकर, इतने अर्से से अपने दिलों में उमड़ घुमड़ रहे अरमानों को सम्पन्न होता देख रहे थे | वैसे भी हमारे बड़े बजुर्ग अक्सर कहते हैं, हमारी शादियों में सम्बन्ध केवल लड़का लड़की के ही नहीं जुड़ते, बल्कि दो परिवारों में भी रिश्ते बनते हैं |

दोनों तरफ़ से शगुनों का आदान प्रदान हो जाने के बाद, अनमोल की माताश्री ने प्रमोद को चलने के लिए इशारा किया और वह खड़े होते हुए बोले , "चंद्रपाल जी ! जाने को मन तो नहीं करता, लेकिन अब हमें आप इज़ाजत दें | लेकिन चंद्रपाल ने उत्तर दिया , "अब आपको इतनी आसानी से इज़ाजत नहीं मिलेगी, लंच का वक़्त हो चूका है, आप खाना खाये बिना नहीं जा सकते | फ़िर वह थोड़ी बहुत ना - नुक्कर के बाद खाना खाने के लिए बैठ गए | खाने के पश्चात, चंद्रपाल ने अपने मेहमानों से अगली कार्यवाही के बारे में उनकी राय जाननी चाही, तो प्रमोद ने उत्तर दिया कि फ़ालतू के रीती रिवाज़ में पड़ने की बजाये, हम सीधे इंगेजमेंट - सगाई ही करना चाहेंगे, अगर आपको कोई इतराज़ न हो, उसके दो तीन महीने बाद शादी कर देंगे | चंद्रपाल ने अपनी पत्नी की तरफ़ देखा और जब उधर से भी हाँ हो गई, तो उसने जवाब दिया, "ठीक है, जैसा आप चाहते हो ! हम लोग किसी पन्डित से कोई अच्छी सी तारीख़ निकलवाते हैं और फ़िर आपको सगाई की सूचना दे देंगे | इसपर फ़िर प्रमोद ने अपनी प्रतिकिर्या देते हुए उत्तर दिया, "देखो चंद्रपाल जी ! जब हमें आपके घर आना था, तो हमने किसी पंडित से तिथि थोड़ी निकवाई थी ? जयप्रकाश जी ने हमें यहाँ आने का न्यौता दिया, हम आकर आपके परिवार से मिले, बच्चों ने एक दूसरे को पसन्द किया और यह रिश्ता पक्का हो गया | अत: मेरा तो यह सुझाव है कि अच्छा रहेगा कि हमलोग पण्डितों के चक्र में कम से कम पड़े और सभी कार्य उसी हिसाब से करें जैसे हम दोनों परिवारों को अपनी सहूलत के नज़रिये से ठीक बैठता है | क्योंकि, आख़िरकार रिश्ता इन दो बच्चों ने निभाना है और हम दोनों परिवारों ने इनको रिश्ता निभाने में सहयोग देना है |" जय प्रकाश को अपने दोस्त के विचार तो बड़े अच्छे लगे और उसने भी उनकी बातों से इत्तेफाक़ जाहिर किया | जागृति के माता पिता भी धीरे - २ उनकी विचारों से सहमत हो गए और इस तरह तय हो गया कि आज से तीसरे रविवार को सगाई की रसम होगी और उसके तीन महीने बाद शादी |

इस निर्णय के बाद जब अनमोल व उसके परिवार वाले जाने लगे तो अनमोल जान-बूझकर थोड़ा पीछे रह गया, उसका इशारा समझकर जागृति भी उसके साथ - २ चलने लगी | जागृति ने धीरे - २ अनमोल से कहा, "आप कल गाड़ी में तो खूब बातें कर रहे थे, अब कुच्छ नहीं बोलेंगे ?" सुनकर अनमोल ने उसकी आँखों में देखा और जवाब दिया, "तुम तो सचमुच बड़ी छुपी रुस्तम निकली, अपनी पसंद मुझे बताने की बजाये, पहले अपनी मम्मी को ही बताई ! और यहाँ तक मेरा सवाल है, मुझे इस पूरे एपिसोड पर एक शेयर याद आ रहा है, कहो तो सुनायूँ ?" जागृति से आँखों ही आँखों में सिग्नल पाकर उसने अपने जज़बात को लफ़्ज़ों में ऐसे पेश किया - "यह ना जाना कि महफ़िल में दिल रह जाएगा / हमने तो सोचा था, लौट आएंगे एक नज़र देखकर !" शेयर सुनकर जागृति बड़ी प्रसन्न हुई और उसने अपनी प्रतिकिर्या दी, "अच्छा जी ! तो जनाब ! शायरी का भी शौक फ़रमाते हैं | आपका शेयर अच्छा है, रही बात आपके दिल यहाँ रह जाने की, हुज़ूर चिन्ता मत करो ! आपका दिल सुरक्षित हाथों में है | बस अब जाते समय गाड़ी ध्यान से चलाना !"

उनको अपनी बातों में इतना खोये हुए देखकर अनमोल के पिताश्री ने आवाज़ दी , "चलो बई ! बहुत देर हो गई, वापिस जालंधर भी जाना है |" उधर जागृति के माता पिता भी देख रहे थे कि कल रात तक जो लड़की लड़के से मिलने के लिए कोई ख़ास इच्छुक नहीं थी, अब जब वह जाने वाला है तो इसका दिल ही नहीं करता कि वह उसे जाने के लिए हाँ कह दे ! ख़ैर , अनमोल ने जब देखा कि उसके माँ बाप और बहन कब से गाड़ी के पास खड़े उसका इन्तज़ार कर रहे है तो उसने झट से जागृति से हाथ मिलाया और गाड़ी की तरफ़ धीरे - २ बढ़ने लगा ! गाड़ी में बैठकर उसने फ़िर सबको हाथ हिलकर बाए - २ किया और अपने घर की ओर चलने लग गया ! थोड़ी ही देर बाद जब गाड़ी मेन सड़क पर आ गई , अनमोल सोचने लग गया कि कल शाम को जब वो चंडीगढ़ से आ रहा था, जागृति का उसकी गाड़ी से लिफ़्ट मांगना और आज उनका उसके घर जाना, क्या यह सब महज़ एक इत्तेफाक़ ही था ? उधर गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे उसके माता - पिता भी बातें कर रहे थे, क्या थोड़े दिन पहले जागृति के मामा का प्रमोद के दफ़्तर में किसी काम की वजह से आना और उसे मुलाकात करना, और फ़िर अपनी भान्जी के लिए रिश्ते की बात करना, क्या यह सब कोई संयोग मात्र ही था या फ़िर सचमुच निरंकार का रचा हुआ कोई बहुत बड़ा इत्तेफ़ाक़ | सभी अपने - २ तरीके से इस अभी बने नए रिश्ते का निरीक्षण व मूल्यांकन कर रहे थे और इन सबसे बेख़बर, उनकी गाड़ी अपनी ही रफ़्तार से उनके गाँव की ओर बढ़ती चली जा रही थी |

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